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"हे मेरी तुम ! / केदारनाथ अग्रवाल" के अवतरणों में अंतर

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हे मेरी तुम!
 
आज धूप जैसी हो आई
 
आज धूप जैसी हो आई
 
 
और दुपट्टा
 
और दुपट्टा
 
 
उसने मेरी छत पर रक्खा
 
उसने मेरी छत पर रक्खा
 
 
मैंने समझा तुम आई हो
 
मैंने समझा तुम आई हो
 
 
दौड़ा मैं तुमसे मिलने को
 
दौड़ा मैं तुमसे मिलने को
 
 
लेकिन मैंने तुम्हें न देखा
 
लेकिन मैंने तुम्हें न देखा
 
 
बार-बार आँखों से खोजा
 
बार-बार आँखों से खोजा
 
 
वही दुपट्टा मैंने देखा
 
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अपनी छत के ऊपर रक्खा।
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मैं हताश हूँ
 
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पत्र भेजता हूँ, तुम उत्तर जल्दी देना:
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बतलाओ क्यों तुम आई थीं मुझ से मिलने
 
बतलाओ क्यों तुम आई थीं मुझ से मिलने
 
 
आज सवेरे,
 
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और दुपट्टा रख कर अपना
 
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चली गई हो बिना मिले ही?
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क्यों?
 
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आख़िर इसका क्या कारण?
क्यों ?
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आख़िर इसका क्या कारण ?
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19:59, 10 जुलाई 2013 के समय का अवतरण

हे मेरी तुम!
आज धूप जैसी हो आई
और दुपट्टा
उसने मेरी छत पर रक्खा
मैंने समझा तुम आई हो
दौड़ा मैं तुमसे मिलने को
लेकिन मैंने तुम्हें न देखा
बार-बार आँखों से खोजा
वही दुपट्टा मैंने देखा
अपनी छत के ऊपर रक्खा।
मैं हताश हूँ
पत्र भेजता हूँ, तुम उत्तर जल्दी देना:
बतलाओ क्यों तुम आई थीं मुझ से मिलने
आज सवेरे,
और दुपट्टा रख कर अपना
चली गई हो बिना मिले ही?
क्यों?
आख़िर इसका क्या कारण?