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''आजकल कोश पर क्या कर रहा हूँ?''
 
''आजकल कोश पर क्या कर रहा हूँ?''
आजकल, बकौल जनविजय जी, मुक्तिबोध को बिना पूछे चांद का मुँह टेढ़ा कर रहा हूँ। असल में आजकल अज्ञेय
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कुछ नहीं कर रहा। एक साल के लिए सब बंद। इस एक साल में भी अगर इम्तिहान में फ़ेल हो गया तो हमेशा के लिए बंद। मम्मा-पापा ने रोक लगा दी। माफी चाहूँगा।--[[सदस्य:Sumitkumar kataria|सुमितकुमार कटारिया]]([[सदस्य वार्ता:Sumitkumar kataria|वार्ता]]) १४:५४, ७ मई २००८ (UTC)
की 'कितनी नावों में कितनी बार' टाइप कर रहा हूँ, उसे लायब्रेरी को लौटाने की जल्दी है। बाद में मुक्तिबोध
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की किताब पूरी करूँगा।
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(उम्मीद करता हूँ, बल्कि मेरा इस तआरुफ़ को लिखने का इरादा भी यही है, कि अब दूसरे सदस्य मेरे लिए
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'जी' या 'आप' शब्द का इस्तेमाल नहीं करेंगे।)
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==मजाज़ लखनवी==
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त्रुटि सुधार के लिये बहुत शुक्रिया, सुमित । आपका दिया गया सुझाव स्वीकार कर लिया गया है। '''--[[सदस्य:Lalit Kumar|Lalit Kumar]] २०:४८, १८ फरवरी २००८ (UTC)'''
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20:25, 7 मई 2008 के समय का अवतरण

मेरा नाम सुमित है। उम्र 17 ('07 में), रहनवारी जयपुर की है। साहित्य का शौकीन हूँ।

कविताओं के बारे में ज़िक्र करूँ तो, सबसे पहले जो कविता मुझे पसंद आयी वो मेरी दसवीं की हिन्दी की किताब में अज्ञेय की 'मैं वहाँ हूँ' थी, इससे पहले मुझे कॉमिक्स और नंदन-चंदामामा सरीखी पत्रिकाओं का चस्का था। फिर museindia.com के एक अंक में श्रीकान्त वर्मा की 'मायादर्पण' और उस पर उनके खुद के लिखे लेख का अंग्रेज़ी में तर्जुमा पढ़ा था। वो लेख मेरी कविता की समझ का स्रोत है। मुक्तिबोध की मेरे लिए बहुत महत्ता है। उनसे मैंने 'न' कहना सीखा है।

आजकल कोश पर क्या कर रहा हूँ? कुछ नहीं कर रहा। एक साल के लिए सब बंद। इस एक साल में भी अगर इम्तिहान में फ़ेल हो गया तो हमेशा के लिए बंद। मम्मा-पापा ने रोक लगा दी। माफी चाहूँगा।--सुमितकुमार कटारिया(वार्ता) १४:५४, ७ मई २००८ (UTC)