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"क्षुद्र की महिमा / श्यामनन्दन किशोर" के अवतरणों में अंतर

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शुद्ध सोना क्यों बनाया प्रभु मुझे तुमने,
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कुछ मिलावट चाहिए गलहार होने के लिए।
  
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जो मिला तुममें, भला क्या
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वह क्या भला अपवाद जाने!
  
शुद्ध सोना क्यों बनाया, प्रभु, मुझे तुमने,<br>
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जो रहा समकक्ष करुणा की मिली कब छाँह उसको,
कुछ मिलावट चाहिए गलहार होने के लिए।<br><br>
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कुछ गिरावट चाहिए उद्धार होने के लिए!
  
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भिन्नता का स्वाद जाने,<br>
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दूसरों के लिए उनको द्वन्द्व क्या!
  
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एक स्रष्टा शून्य को शृंगार सकता है,
कुछ गिरावट चाहिए, उद्धार होने के लिए।<br><br>
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मोह कुछ तो चाहिए साकार होने के लिए!
  
जो अजन्मा है, उन्हें इस<br>
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क्या निदाध नहीं प्रवासी बादलों से
इंद्रधनुषी विश्व से संबंध क्या!<br>
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खींच सावन-धार लाता है!
जो न पीड़ा झेल पाये स्वयं,<br>
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निर्झरों के पत्थरों पर गीत लिक्खे
दूसरों के लिए उनको द्वंद्व क्या!<br><br>
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क्या नहीं फेनिल, मधुर संघर्ष गाता है!
  
एक स्रष्टा शून्य को श्रृंगार सकता है<br>
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हैं अभाव जहाँ, वहीं हैं भाव दुर्लभ
मोह कुछ तो चाहिए, साकार होने के लिए!<br><br>
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कुछ विकर्षण चाहिए ही प्यार होने के लिए!
  
क्या निदाघ नहीं प्रलासी बादलों से<br>
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(23.9.1974)
खींच सावन धार लाता है!<br>
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निर्झरों के पत्थरों पर गीत लिक्खे<br>
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क्या नहीं फेनिल, मधुर संघर्ष गाता है!<br><br>
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है अभाव जहाँ, वहीं है भाव दुर्लभ -<br>
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कुछ विकर्षण चाहिए ही, प्यार होने के लिए!<br><br>
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वाद्य यंत्र न दृष्टि पथ, पर हो,<br>
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मधुर झंकार लगती और भी!<br>
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विरह के मधुवन सरीखे दीखते<br>
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हैं क्षणिक सहवास वाले ठौर भी!<br><br>
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साथ रहने पर नहीं होती सही पहचान!<br>
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चाहिए दूरी तनिक, अधिकार होने के लिए!<br><br>
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01:43, 27 अक्टूबर 2015 के समय का अवतरण

शुद्ध सोना क्यों बनाया प्रभु मुझे तुमने,
कुछ मिलावट चाहिए गलहार होने के लिए।

जो मिला तुममें, भला क्या
भिन्नता का स्वाद जाने,
जो नियम में बँध गया,
वह क्या भला अपवाद जाने!

जो रहा समकक्ष करुणा की मिली कब छाँह उसको,
कुछ गिरावट चाहिए उद्धार होने के लिए!

जो अजन्मा हैं, उन्हें इस
इन्द्रधनुषी विश्व से सम्बन्ध क्या!
जो न पीड़ा झेल पाएँ स्वयं,
दूसरों के लिए उनको द्वन्द्व क्या!

एक स्रष्टा शून्य को शृंगार सकता है,
मोह कुछ तो चाहिए साकार होने के लिए!

क्या निदाध नहीं प्रवासी बादलों से
खींच सावन-धार लाता है!
निर्झरों के पत्थरों पर गीत लिक्खे
क्या नहीं फेनिल, मधुर संघर्ष गाता है!

हैं अभाव जहाँ, वहीं हैं भाव दुर्लभ
कुछ विकर्षण चाहिए ही प्यार होने के लिए!

(23.9.1974)