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|संग्रह=प्रेम पीयूष / बदरीनारायण चौधरी 'प्रेमघन'
 
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ही मैं धारे स्याम रंग ही को हरसावै जग,
 
ही मैं धारे स्याम रंग ही को हरसावै जग,
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::सुनि जाहि रसिक मुदित नाचै मोर मन।
 
::सुनि जाहि रसिक मुदित नाचै मोर मन।
 
बरसत सुखद सुजस रावरे को रहै,
 
बरसत सुखद सुजस रावरे को रहै,
::कृपा वारि पूरित सदा ही यह प्रेमधन॥
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::कृपा वारि पूरित सदा ही यह प्रेमघन॥
 
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12:44, 2 फ़रवरी 2016 के समय का अवतरण

ही मैं धारे स्याम रंग ही को हरसावै जग,
भरै भक्ति सर तोषि कै चतुर चातकन।
भूमि हरिआवै कविता की कवि दोष ताप,
हरि नागरी की चाह बाढ़ै जासो छन छन॥
गरजि सुनावै गुन गन सों मधुर धुनि,
सुनि जाहि रसिक मुदित नाचै मोर मन।
बरसत सुखद सुजस रावरे को रहै,
कृपा वारि पूरित सदा ही यह प्रेमघन॥