Last modified on 14 फ़रवरी 2009, at 15:28

"तेरा हाथ मेरे काँधे / बशीर बद्र" के अवतरणों में अंतर

 
(एक अन्य सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया)
पंक्ति 3: पंक्ति 3:
 
|रचनाकार=बशीर बद्र
 
|रचनाकार=बशीर बद्र
 
}}  
 
}}  
 +
<poem>
 +
तेरा हाथ मेरे काँधे पे दर्या बहता जाता है
 +
कितनी खामोशी से दुख का मौसम गुजरा जाता है
  
तेरा हाथ मेरे काँधे पे दर्या बहता जाता है<br>
+
नीम पे अटके चाँद की पलकें शबनम से भर जाती हैं
कितनी खामोशी से दुख का मौसम गुजरा जाता है।<br><br>
+
सूने घर में रात गये जब कोई आता-जाता है
  
नीम पे अटके चाँद की पलकें शबनम से भर जाती हैं,<br>
+
पहले ईँट, फिर दरवाजे, अब के छत की बारी है
सूने घर में रात गये जब कोई आता-जाता है।<br><br>
+
याद नगर में एक महल था, वो भी गिरता जाता है
 
+
</poem>
पहले ईँट, फिर दरवाजे, अब के छत की बारी है<br>
+
याद नगर में एक महल था, वो भी गिरता जाता है।
+
 
+
कुछ मिला कुछ गया तेरी यादों में <br>
+
क्या दें तुमको पास कुछ भी नहीं
+
सांस आती है और सांस जाती सनम<br>
+
एक तेरे सिवा दिल में कुछ नहीं
+

15:28, 14 फ़रवरी 2009 के समय का अवतरण

तेरा हाथ मेरे काँधे पे दर्या बहता जाता है
कितनी खामोशी से दुख का मौसम गुजरा जाता है

नीम पे अटके चाँद की पलकें शबनम से भर जाती हैं
सूने घर में रात गये जब कोई आता-जाता है

पहले ईँट, फिर दरवाजे, अब के छत की बारी है
याद नगर में एक महल था, वो भी गिरता जाता है