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"एकाकी / अबुल हसन" के अवतरणों में अंतर

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इतना नहीं चाहा था
 
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अपने गिर्द;
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यह भीड़, ये शोरगुल,
 
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इतना समारोह
 
इतना समारोह

22:20, 12 जुलाई 2016 के समय का अवतरण

इतना नहीं चाहा था लड़की ने।
इतना जल्वा,
इतनी ख़ुदमुख़्तारी!
इससे कुछ कम चाहा था:
आईने के सामने
देह खोलकर बैठना सारी दोपहर;
माँ डाँटें, पिता दर्द समझें।

इतना नहीं चाहा था
अपने गिर्द
यह भीड़, ये शोरगुल,
इतना समारोह
नहीं चाहा था।

एक जल-स्रोत, कुछ प्यास,
ये चाहे थे;
एक आदमी का प्यारी कह पुकारना।

अबुल हसन की कविता : ’निःसंगता’ का अनुवाद
मूल बांग्ला से अनुवाद : शिव किशोर तिवारी