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एकाकी / अबुल हसन
Kavita Kosh से
इतना नहीं चाहा था लड़की ने।
इतना जल्वा,
इतनी ख़ुदमुख़्तारी!
इससे कुछ कम चाहा था:
आईने के सामने
देह खोलकर बैठना सारी दोपहर;
माँ डाँटें, पिता दर्द समझें।
इतना नहीं चाहा था
अपने गिर्द
यह भीड़, ये शोरगुल,
इतना समारोह
नहीं चाहा था।
एक जल-स्रोत, कुछ प्यास,
ये चाहे थे;
एक आदमी का प्यारी कह पुकारना।
अबुल हसन की कविता : ’निःसंगता’ का अनुवाद
मूल बांग्ला से अनुवाद : शिव किशोर तिवारी