भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"ईशावास्य उपनिषद / मृदुल कीर्ति" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=जयशंकर प्रसाद }} Category:लम्बी रचना Category:उपनिषद * [[मंत्र 1-5 /...) |
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) छो (ईशावास्य उपनिषद / मृदुल कीर्ती moved to ईशावास्य उपनिषद / मृदुल कीर्ति) |
||
(इसी सदस्य द्वारा किये गये बीच के 5 अवतरण नहीं दर्शाए गए) | |||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
{{KKGlobal}} | {{KKGlobal}} | ||
{{KKRachna | {{KKRachna | ||
− | |रचनाकार= | + | |रचनाकार=मृदुल कीर्ति |
}} | }} | ||
[[Category:लम्बी रचना]] | [[Category:लम्बी रचना]] | ||
[[Category:उपनिषद]] | [[Category:उपनिषद]] | ||
+ | [[Category:हरिगीतिका]] | ||
− | * [[मंत्र 1-5 / ईशावास्य उपनिषद / मृदुल | + | |
− | * [[मंत्र 6-10 / ईशावास्य उपनिषद / मृदुल | + | '''ॐ'''<br><br> |
− | * [[मंत्र 11-15 / ईशावास्य उपनिषद / मृदुल | + | '''समर्पण'''<br><br> |
− | * [[मंत्र 16-18 / ईशावास्य उपनिषद / मृदुल | + | परब्रह्म को<br> |
+ | उस आदि शक्ति को,<br> | ||
+ | जिसका संबल अविराम,<br> | ||
+ | मेरी शिराओ में प्रवाहित है।<br> | ||
+ | उसे अपनी अकिंचनता,<br> | ||
+ | अनन्यता<br> | ||
+ | एवं समर्पण<br> | ||
+ | से बड़ी और क्या पूजा दूँ ?<br><br> | ||
+ | |||
+ | '''शान्ति मंत्र'''<br><br> | ||
+ | <span class="upnishad_mantra"> | ||
+ | पूर्ण मदः पूर्ण मिदं पूर्णात पूर्ण मुदचत्ये,<br> | ||
+ | पूर्णस्य पूर्ण मादाये पूर्ण मेवावशिश्यते<br><br> | ||
+ | </span> | ||
+ | |||
+ | <span class="mantra_translation"> | ||
+ | परिपूर्ण पूर्ण है पूर्ण प्रभु, यह जगत भी प्रभु पूर्ण है,<br> | ||
+ | परिपूर्ण प्रभु की पूर्णता से पूर्ण जग सम्पूर्ण है,<br> | ||
+ | उस पूर्णता से पूर्ण घट कर पूर्णता ही शेष है,<br> | ||
+ | परिपूर्ण प्रभु परमेश की यह पूर्णता ही विशेष है।<br> | ||
+ | </span> | ||
+ | |||
+ | * [[मंत्र 1-5 / ईशावास्य उपनिषद / मृदुल कीर्ति]] | ||
+ | * [[मंत्र 6-10 / ईशावास्य उपनिषद / मृदुल कीर्ति]] | ||
+ | * [[मंत्र 11-15 / ईशावास्य उपनिषद / मृदुल कीर्ति]] | ||
+ | * [[मंत्र 16-18 / ईशावास्य उपनिषद / मृदुल कीर्ति]] |
00:08, 28 अप्रैल 2008 के समय का अवतरण
ॐ
समर्पण
परब्रह्म को
उस आदि शक्ति को,
जिसका संबल अविराम,
मेरी शिराओ में प्रवाहित है।
उसे अपनी अकिंचनता,
अनन्यता
एवं समर्पण
से बड़ी और क्या पूजा दूँ ?
शान्ति मंत्र
पूर्ण मदः पूर्ण मिदं पूर्णात पूर्ण मुदचत्ये,
पूर्णस्य पूर्ण मादाये पूर्ण मेवावशिश्यते
परिपूर्ण पूर्ण है पूर्ण प्रभु, यह जगत भी प्रभु पूर्ण है,
परिपूर्ण प्रभु की पूर्णता से पूर्ण जग सम्पूर्ण है,
उस पूर्णता से पूर्ण घट कर पूर्णता ही शेष है,
परिपूर्ण प्रभु परमेश की यह पूर्णता ही विशेष है।