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गळगचिया (49) / कन्हैया लाल सेठिया
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09:35, 17 मार्च 2017
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पग कयो- सुई तूं काटै नै तुरत फुरत ही किया काढ़ लै ?
सुई बोली-अरै भोळिया घर रो भेढू लंका ढ़ावै आ कैबत तो घणी पुराणी है।
</poem>
आशीष पुरोहित
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