भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

गळगचिया (49) / कन्हैया लाल सेठिया

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

पग कयो- सुई तूं काटै नै तुरत फुरत ही किया काढ़ लै ?
सुई बोली-अरै भोळिया घर रो भेढू लंका ढ़ावै आ कैबत तो घणी पुराणी है।