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पूर्व चलने के बटोही, बाट की पहचान कर ले
  
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पुस्तकों में है नहीं छापी गई इसकी कहानी,
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हाल इसका ज्ञात होता है न औरों की ज़बानी,
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अनगिनत राही गए इस राह से, उनका पता क्या,
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पर गए कुछ लोग इस पर छोड़ पैरों की निशानी,
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यह निशानी मूक होकर भी बहुत कुछ बोलती है,
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खोल इसका अर्थ, पंथी, पंथ का अनुमान कर ले।
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पूर्व चलने के बटोही, बाट की पहचान कर ले।
  
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है अनिश्चित किस जगह पर सरित, गिरि, गह्वर मिलेंगे,
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है अनिश्चित किस जगह पर बाग वन सुंदर मिलेंगे,
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किस जगह यात्रा ख़तम हो जाएगी, यह भी अनिश्चित,
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है अनिश्चित कब सुमन, कब कंटकों के शर मिलेंगे
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कौन सहसा छूट जाएँगे, मिलेंगे कौन सहसा,
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आ पड़े कुछ भी, रुकेगा तू न, ऐसी आन कर ले।
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पूर्व चलने के बटोही, बाट की पहचान कर ले।
  
पुस्तकों में है नहीं<br>
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छापी गई इसकी कहानी<br>
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देखते सब हैं इन्हें अपनी उमर, अपने समय में,
हाल इसका ग्यात होता<br>
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ये उदय होते लिए कुछ ध्येय नयनों के निलय में,
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किन्तु जग के पंथ पर यदि, स्वप्न दो तो सत्य दो सौ,
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स्वप्न पर ही मुग्ध मत हो, सत्य का भी ज्ञान कर ले।
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पूर्व चलने के बटोही, बाट की पहचान कर ले।
  
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स्वप्न आता स्वर्ग का, दृग-कोरकों में दीप्ति आती,
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पंख लग जाते पगों को, ललकती उन्मुक्त छाती,
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रास्ते का एक काँटा, पाँव का दिल चीर देता,
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रक्त की दो बूँद गिरतीं, एक दुनिया डूब जाती,
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आँख में हो स्वर्ग लेकिन, पाँव पृथ्वी पर टिके हों,
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कंटकों की इस अनोखी सीख का सम्मान कर ले।
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पूर्व चलने के बटोही, बाट की पहचान कर ले।
  
अनगिनत राही गये<br>
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यह बुरा है या कि अच्छा, व्यर्थ दिन इस पर बिताना,
इस राह से उनका पता क्या<br>
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अब असंभव छोड़ यह पथ दूसरे पर पग बढ़ाना,
पर गये कुछ लोग इस पर<br>
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तू इसे अच्छा समझ, यात्रा सरल इससे बनेगी,
छोड पैरों की निशानी<br>
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हर सफल पंथी यही विश्वास ले इस पर बढ़ा है,
 
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तू इसी पर आज अपने चित्त का अवधान कर ले।
यह निशानी मूक हो कर<br>
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पूर्व चलने के बटोही, बाट की पहचान कर ले।
भी बहुत कुछ बोलती है<br>
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कंटकों के शर मिलेंगे<br>
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कौन सहसा छूट जाएंगें<br>
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मिलेंगे कौन सहसा<br>
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आ पडे कुछ भी रुकेगा<br>
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पूर्व चलने के बटोही, बाट की पहचान कर ले
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10:09, 7 नवम्बर 2011 के समय का अवतरण

पूर्व चलने के बटोही, बाट की पहचान कर ले

पुस्तकों में है नहीं छापी गई इसकी कहानी,
हाल इसका ज्ञात होता है न औरों की ज़बानी,
अनगिनत राही गए इस राह से, उनका पता क्या,
पर गए कुछ लोग इस पर छोड़ पैरों की निशानी,
यह निशानी मूक होकर भी बहुत कुछ बोलती है,
खोल इसका अर्थ, पंथी, पंथ का अनुमान कर ले।
पूर्व चलने के बटोही, बाट की पहचान कर ले।

है अनिश्चित किस जगह पर सरित, गिरि, गह्वर मिलेंगे,
है अनिश्चित किस जगह पर बाग वन सुंदर मिलेंगे,
किस जगह यात्रा ख़तम हो जाएगी, यह भी अनिश्चित,
है अनिश्चित कब सुमन, कब कंटकों के शर मिलेंगे
कौन सहसा छूट जाएँगे, मिलेंगे कौन सहसा,
आ पड़े कुछ भी, रुकेगा तू न, ऐसी आन कर ले।
पूर्व चलने के बटोही, बाट की पहचान कर ले।

कौन कहता है कि स्वप्नों को न आने दे हृदय में,
देखते सब हैं इन्हें अपनी उमर, अपने समय में,
और तू कर यत्न भी तो, मिल नहीं सकती सफलता,
ये उदय होते लिए कुछ ध्येय नयनों के निलय में,
किन्तु जग के पंथ पर यदि, स्वप्न दो तो सत्य दो सौ,
स्वप्न पर ही मुग्ध मत हो, सत्य का भी ज्ञान कर ले।
पूर्व चलने के बटोही, बाट की पहचान कर ले।

स्वप्न आता स्वर्ग का, दृग-कोरकों में दीप्ति आती,
पंख लग जाते पगों को, ललकती उन्मुक्त छाती,
रास्ते का एक काँटा, पाँव का दिल चीर देता,
रक्त की दो बूँद गिरतीं, एक दुनिया डूब जाती,
आँख में हो स्वर्ग लेकिन, पाँव पृथ्वी पर टिके हों,
कंटकों की इस अनोखी सीख का सम्मान कर ले।
पूर्व चलने के बटोही, बाट की पहचान कर ले।

यह बुरा है या कि अच्छा, व्यर्थ दिन इस पर बिताना,
अब असंभव छोड़ यह पथ दूसरे पर पग बढ़ाना,
तू इसे अच्छा समझ, यात्रा सरल इससे बनेगी,
सोच मत केवल तुझे ही यह पड़ा मन में बिठाना,
हर सफल पंथी यही विश्वास ले इस पर बढ़ा है,
तू इसी पर आज अपने चित्त का अवधान कर ले।
पूर्व चलने के बटोही, बाट की पहचान कर ले।