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सिर्फ़ कल्पनाओं से<br> | सिर्फ़ कल्पनाओं से<br> | ||
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उनके बारे में सोचता हूँ<br> | उनके बारे में सोचता हूँ<br> | ||
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प्रतीक्षा सहता हूँ। <br><br> | प्रतीक्षा सहता हूँ। <br><br> |
02:39, 11 जून 2008 के समय का अवतरण
परदे हटाकर करीने से
रोशनदान खोलकर
कमरे का फर्नीचर सजाकर
और स्वागत के शब्दों को तोलकर
टक टकी बाँधकर बाहर देखता हूँ
और देखता रहता हूँ मैं।
सड़कों पर धूप चिलचिलाती है
चिड़िया तक दिखायी नही देती
पिघले तारकोल में
हवा तक चिपक जाती है बहती बहती,
किन्तु इस गर्मी के विषय में किसी से
एक शब्द नही कहता हूँ मैं।
सिर्फ़ कल्पनाओं से
सूखी और बंजर ज़मीन को खरोंचता हूँ
जन्म लिया करता है जो ऐसे हालात में
उनके बारे में सोचता हूँ
कितनी अजीब बात है कि आज भी
प्रतीक्षा सहता हूँ।