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"चाँद रात / परवीन शाकिर" के अवतरणों में अंतर
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दुआ के बेआवाज़ उलूही लम्हों में | दुआ के बेआवाज़ उलूही लम्हों में | ||
वो लम्हा भी कितना दिलकश लम्हा था | वो लम्हा भी कितना दिलकश लम्हा था |
15:40, 31 जुलाई 2020 के समय का अवतरण
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गए बरस की ईद का दिन क्या अच्छा था
चाँद को देख के उसका चेहरा देखा था
फ़ज़ा में कीट्स के लहजे की नरमाहट थी
मौसम अपने रंग में फ़ैज़ का मिसरा था
दुआ के बेआवाज़ उलूही लम्हों में
वो लम्हा भी कितना दिलकश लम्हा था
हाथ उठा कर जब आँखों ही आँखों में
उसने मुझको अपने रब से माँगा था
फिर मेरे चेहरे को हाथों में लेकर
कितने प्यार से मेरा माथा चूमा था
हवा कुछ आज की शब का भी अहवाल सुना
क्या वो अपनी छत पर आज अकेला था
या कोई मेरे जैसी साथ थी और उसने
चाँद को देख के उसका चेहरा देखा था