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एक बार ही सही / अनवर ईरज
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13:32, 4 नवम्बर 2009
|रचनाकार=अनवर ईरज
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वो
बार-बार
बोल रहा है
और ज़हर उगल रहा है
वो
बार-बार
बोल रहा है
ग़लत और झूठ
बोल रहा है
क्या हम इतने
ग़ैर जानिबदार
सैक्यूलर
और मस्लेहात पसंद हो गए हैं
कि बार-बार नहीं तो कम से कम
हमें एक बार ही सही
सच तो बोलना चाहिए
</poem>
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