Changes

एक बार ही सही / अनवर ईरज

15 bytes added, 13:32, 4 नवम्बर 2009
|रचनाकार=अनवर ईरज
}}
{{KKCatKavita}}<poem>
वो
 
बार-बार
 
बोल रहा है
 
और ज़हर उगल रहा है
 
वो
 
बार-बार
 
बोल रहा है
 
ग़लत और झूठ
 
बोल रहा है
 
क्या हम इतने
 
ग़ैर जानिबदार
 
सैक्यूलर
 
और मस्लेहात पसंद हो गए हैं
 
कि बार-बार नहीं तो कम से कम
 
हमें एक बार ही सही
 
सच तो बोलना चाहिए
</poem>
Delete, KKSahayogi, Mover, Protect, Reupload, Uploader
19,393
edits