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"सिक्के की औक़ात / अशोक चक्रधर" के अवतरणों में अंतर
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− | हमें छोटा समझकर | + | |
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− | कुछ भी कह लें | + | |
− | दान-पुन्न के काम तो | + | |
− | हम ही आते हैं।< | + |
12:05, 2 जुलाई 2020 के समय का अवतरण
एक बार
बरखुरदार!
एक रुपए के सिक्के,
और पाँच पैसे के सिक्के में,
लड़ाई हो गई,
पर्स के अंदर
हाथापाई हो गई।
जब पाँच का सिक्का
दनदना गया
तो रुपया झनझना गया
पिद्दी न पिद्दी की दुम
अपने आपको
क्या समझते हो तुम!
मुझसे लड़ते हो,
औक़ात देखी है
जो अकड़ते हो!
इतना कहकर मार दिया धक्का,
सुबकते हुए बोला
पाँच का सिक्का-
हमें छोटा समझकर
दबाते हैं,
कुछ भी कह लें
दान-पुन्न के काम तो
हम ही आते हैं।