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"अँधेरी खाइयों के बीच / कुँअर बेचैन" के अवतरणों में अंतर

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दुखों की स्याहियों के बीच
 
दुखों की स्याहियों के बीच
 
 
अपनी ज़िंदगी ऐसी
 
अपनी ज़िंदगी ऐसी
 
 
कि जैसे सोख़्ता हो।
 
कि जैसे सोख़्ता हो।
 
  
 
जनम से मृत्यु तक की
 
जनम से मृत्यु तक की
 
 
यह सड़क लंबी
 
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भरी है धूल से ही
 
भरी है धूल से ही
 
 
यहाँ हर साँस की दुलहिन
 
यहाँ हर साँस की दुलहिन
 
 
बिंधी है शूल से ही
 
बिंधी है शूल से ही
 
 
अँधेरी खाइयों के बीच
 
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अपनी ज़िंदगी ऐसी
 
कि ज्यों ख़त लापता हो।
 
कि ज्यों ख़त लापता हो।
 
  
 
हमारा हर दिवस रोटी
 
हमारा हर दिवस रोटी
 
 
जिसे भूखे क्षणों ने
 
जिसे भूखे क्षणों ने
 
 
खा लिया है
 
खा लिया है
 
 
हमारी रात है थिगड़ी
 
हमारी रात है थिगड़ी
 
 
जिसे बूढ़ी अमावस ने सिया है
 
जिसे बूढ़ी अमावस ने सिया है
 
 
घनी अमराइयों के बीच
 
घनी अमराइयों के बीच
 
 
अपनी ज़िंदगी,
 
अपनी ज़िंदगी,
 
 
जैसे कि पतझर की लता हो।
 
जैसे कि पतझर की लता हो।
 
  
 
हमारी उम्र है स्वेटर
 
हमारी उम्र है स्वेटर
 
 
जिसे दुख की  
 
जिसे दुख की  
 
 
सलाई ने बुना है
 
सलाई ने बुना है
 
 
हमारा दर्द है धागा
 
हमारा दर्द है धागा
 
 
जिसे हर प्रीतिबाला ने चुना है
 
जिसे हर प्रीतिबाला ने चुना है
 
 
कई शहनाइयों के बीच
 
कई शहनाइयों के बीच
 
 
अपनी ज़िंदगी
 
अपनी ज़िंदगी
 
 
जैसे अभागिन की चिता हो।
 
जैसे अभागिन की चिता हो।
 
'''''-- यह कविता [[Dr.Bhawna Kunwar]] द्वारा कविता कोश में डाली गयी है।<br><br>'''''
 

10:28, 1 जुलाई 2013 के समय का अवतरण

दुखों की स्याहियों के बीच
अपनी ज़िंदगी ऐसी
कि जैसे सोख़्ता हो।

जनम से मृत्यु तक की
यह सड़क लंबी
भरी है धूल से ही
यहाँ हर साँस की दुलहिन
बिंधी है शूल से ही
अँधेरी खाइयों के बीच
अपनी ज़िंदगी ऐसी
कि ज्यों ख़त लापता हो।

हमारा हर दिवस रोटी
जिसे भूखे क्षणों ने
खा लिया है
हमारी रात है थिगड़ी
जिसे बूढ़ी अमावस ने सिया है
घनी अमराइयों के बीच
अपनी ज़िंदगी,
जैसे कि पतझर की लता हो।

हमारी उम्र है स्वेटर
जिसे दुख की
सलाई ने बुना है
हमारा दर्द है धागा
जिसे हर प्रीतिबाला ने चुना है
कई शहनाइयों के बीच
अपनी ज़िंदगी
जैसे अभागिन की चिता हो।