"असंत-वसंत के बहाने / लीलाधर जगूड़ी" के अवतरणों में अंतर
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हवा, पानी और ऋतुओं में बदल कर समय | हवा, पानी और ऋतुओं में बदल कर समय | ||
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हेमंत और शिशिर का कल्याणकारी उत्पाती | हेमंत और शिशिर का कल्याणकारी उत्पाती | ||
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सहयोग ले कर | सहयोग ले कर | ||
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अनुवांशिकी के लिए खोजता या ख़ाली करवाता | अनुवांशिकी के लिए खोजता या ख़ाली करवाता | ||
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है जगह | है जगह | ||
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संत या असंत आगंतुक वसंत ने | संत या असंत आगंतुक वसंत ने | ||
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वृक्षस्थ पूर्वज— वसंत के पीछे | वृक्षस्थ पूर्वज— वसंत के पीछे | ||
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हेमंत—शिशिर दो वैरागियों को लगा रक्खा है | हेमंत—शिशिर दो वैरागियों को लगा रक्खा है | ||
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जो पत्रस्थ गेरुवे को भी उतार अपने सहित | जो पत्रस्थ गेरुवे को भी उतार अपने सहित | ||
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सबको | सबको | ||
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दिगम्बर किए दे रहे हैं | दिगम्बर किए दे रहे हैं | ||
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और शीर्ण शिराओं से रक्तहीन पदस्थ पीलेपन के | और शीर्ण शिराओं से रक्तहीन पदस्थ पीलेपन के | ||
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ख़ात्मे में जुटे हुए हैं | ख़ात्मे में जुटे हुए हैं | ||
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हिम—शीत पीड़ित दो हथेलियों को करीब ले आने वाली | हिम—शीत पीड़ित दो हथेलियों को करीब ले आने वाली | ||
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रगड़ावादी ये दो ऋतुएँ | रगड़ावादी ये दो ऋतुएँ | ||
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जिनका काम ही है प्रभंजन से अवरोधक का | जिनका काम ही है प्रभंजन से अवरोधक का | ||
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भंजन करवा देना | भंजन करवा देना | ||
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हवाओं को पेड़ों और पहाड़ों से लड़वा देना | हवाओं को पेड़ों और पहाड़ों से लड़वा देना | ||
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नोचा—खोंसी में सबको अपत्र करवा देना | नोचा—खोंसी में सबको अपत्र करवा देना | ||
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ताकि प्रकृति की लड़ाई भी हो जाए और बुहारी | ताकि प्रकृति की लड़ाई भी हो जाए और बुहारी | ||
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भी | भी | ||
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और परोपकार का स्वाभाविक ठेका छोड़ना भी न | और परोपकार का स्वाभाविक ठेका छोड़ना भी न | ||
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पड़े | पड़े | ||
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पिछला वसंत अगर एक ही महंत की तरह | पिछला वसंत अगर एक ही महंत की तरह | ||
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सब ऋतुओं को छेके रहे | सब ऋतुओं को छेके रहे | ||
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तो नवोदय कहाँ से होगा | तो नवोदय कहाँ से होगा | ||
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कैसे उगेगी नवजोत एक—एक पत्ती की | कैसे उगेगी नवजोत एक—एक पत्ती की | ||
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हर ऋतु के अस्तित्व को कोई दूसरी ऋतु धकेल | हर ऋतु के अस्तित्व को कोई दूसरी ऋतु धकेल | ||
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रही है | रही है | ||
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चुटकी भर धक्के से ही फूटता है कोई नया फूल | चुटकी भर धक्के से ही फूटता है कोई नया फूल | ||
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खिलती है कोई नई कली | खिलती है कोई नई कली | ||
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शुरु होता है कोई नया दिल | शुरु होता है कोई नया दिल | ||
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चटकता है कोई नया फूट कछारों में | चटकता है कोई नया फूट कछारों में | ||
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ब्राह्म मुहूर्त में चटकता है पूरा जंगल | ब्राह्म मुहूर्त में चटकता है पूरा जंगल | ||
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रोंगटों—सी खड़ी वनस्पतियों के पोर—पोर में | रोंगटों—सी खड़ी वनस्पतियों के पोर—पोर में | ||
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हेमंत और शिशिर की वैरागी हवाएँ | हेमंत और शिशिर की वैरागी हवाएँ | ||
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रिक्तता भेंट कर ही शांत होती हैं जिनकी चाहें और | रिक्तता भेंट कर ही शांत होती हैं जिनकी चाहें और | ||
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बाहें | बाहें | ||
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स्त्रांत में पत्रांत ही मुख्य वस्त्रांत है जिनका | स्त्रांत में पत्रांत ही मुख्य वस्त्रांत है जिनका | ||
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वसनांत के बाद खलियाई जगहें ऐसे पपोटिया | वसनांत के बाद खलियाई जगहें ऐसे पपोटिया | ||
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जाती हैं | जाती हैं | ||
− | + | जैसे पेड़ भग-वान इन्द्र की तरह सहस्त्र नयन हो | |
− | जैसे पेड़ | + | |
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गए हों | गए हों | ||
− | + | घावों पर वरदान-सी फिरतीं | |
− | घावों पर वरदान | + | |
− | + | ||
वसंत की रफ़ूगर उँगलियाँ काढ़ती हैं पल्लव | वसंत की रफ़ूगर उँगलियाँ काढ़ती हैं पल्लव | ||
− | |||
सैंकड़ों बारीक पैरों से जितना कमाते हैं पादप | सैंकड़ों बारीक पैरों से जितना कमाते हैं पादप | ||
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उतना प्रस्फुटित हज़ारों मुखों को पहुँचाते हैं | उतना प्रस्फुटित हज़ारों मुखों को पहुँचाते हैं | ||
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टहनियों के बीच खिल उठते हैं आकाश के कई | टहनियों के बीच खिल उठते हैं आकाश के कई | ||
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चेहरे | चेहरे | ||
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दो रागिये—वैरागिये | दो रागिये—वैरागिये | ||
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हेमंत और शिशिर | हेमंत और शिशिर | ||
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अधोगति के तम में जाकर पता लगाते हैं उन | अधोगति के तम में जाकर पता लगाते हैं उन | ||
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जड़ों का | जड़ों का | ||
− | + | जिनके प्रियतम-सा ऊर्ध्वारोही दिखता है अगला | |
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वसंत | वसंत | ||
− | |||
पिछली पत्तियाँ जैसे पहला प्रारूप कविता का | पिछली पत्तियाँ जैसे पहला प्रारूप कविता का | ||
− | |||
झाड़ दिये सारे वर्ण | झाड़ दिये सारे वर्ण | ||
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पंक्ति—दर—पंक्ति पेड़ों के आत्म विवरण की नई | पंक्ति—दर—पंक्ति पेड़ों के आत्म विवरण की नई | ||
− | |||
लिखावट | लिखावट | ||
− | |||
फिर से क्षर —अक्षर उभार लाई रक्त में | फिर से क्षर —अक्षर उभार लाई रक्त में | ||
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फटी, पुरती एड़ियों सहित हाथ चमकने लगे हैं | फटी, पुरती एड़ियों सहित हाथ चमकने लगे हैं | ||
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पपड़ीली मुस्कान भी स्निग्ध हुई | पपड़ीली मुस्कान भी स्निग्ध हुई | ||
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आत्मा के जूते की तरह शरीर की मरम्मत कर दी | आत्मा के जूते की तरह शरीर की मरम्मत कर दी | ||
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वसंत ने | वसंत ने | ||
− | |||
हर एक की चेतना में बैठे आदिम चर्मकार | हर एक की चेतना में बैठे आदिम चर्मकार | ||
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तुझको नमस्कार ! | तुझको नमस्कार ! | ||
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11:42, 29 दिसम्बर 2011 के समय का अवतरण
हवा, पानी और ऋतुओं में बदल कर समय
हेमंत और शिशिर का कल्याणकारी उत्पाती
सहयोग ले कर
अनुवांशिकी के लिए खोजता या ख़ाली करवाता
है जगह
संत या असंत आगंतुक वसंत ने
वृक्षस्थ पूर्वज— वसंत के पीछे
हेमंत—शिशिर दो वैरागियों को लगा रक्खा है
जो पत्रस्थ गेरुवे को भी उतार अपने सहित
सबको
दिगम्बर किए दे रहे हैं
और शीर्ण शिराओं से रक्तहीन पदस्थ पीलेपन के
ख़ात्मे में जुटे हुए हैं
हिम—शीत पीड़ित दो हथेलियों को करीब ले आने वाली
रगड़ावादी ये दो ऋतुएँ
जिनका काम ही है प्रभंजन से अवरोधक का
भंजन करवा देना
हवाओं को पेड़ों और पहाड़ों से लड़वा देना
नोचा—खोंसी में सबको अपत्र करवा देना
ताकि प्रकृति की लड़ाई भी हो जाए और बुहारी
भी
और परोपकार का स्वाभाविक ठेका छोड़ना भी न
पड़े
पिछला वसंत अगर एक ही महंत की तरह
सब ऋतुओं को छेके रहे
तो नवोदय कहाँ से होगा
कैसे उगेगी नवजोत एक—एक पत्ती की
हर ऋतु के अस्तित्व को कोई दूसरी ऋतु धकेल
रही है
चुटकी भर धक्के से ही फूटता है कोई नया फूल
खिलती है कोई नई कली
शुरु होता है कोई नया दिल
चटकता है कोई नया फूट कछारों में
ब्राह्म मुहूर्त में चटकता है पूरा जंगल
रोंगटों—सी खड़ी वनस्पतियों के पोर—पोर में
हेमंत और शिशिर की वैरागी हवाएँ
रिक्तता भेंट कर ही शांत होती हैं जिनकी चाहें और
बाहें
स्त्रांत में पत्रांत ही मुख्य वस्त्रांत है जिनका
वसनांत के बाद खलियाई जगहें ऐसे पपोटिया
जाती हैं
जैसे पेड़ भग-वान इन्द्र की तरह सहस्त्र नयन हो
गए हों
घावों पर वरदान-सी फिरतीं
वसंत की रफ़ूगर उँगलियाँ काढ़ती हैं पल्लव
सैंकड़ों बारीक पैरों से जितना कमाते हैं पादप
उतना प्रस्फुटित हज़ारों मुखों को पहुँचाते हैं
टहनियों के बीच खिल उठते हैं आकाश के कई
चेहरे
दो रागिये—वैरागिये
हेमंत और शिशिर
अधोगति के तम में जाकर पता लगाते हैं उन
जड़ों का
जिनके प्रियतम-सा ऊर्ध्वारोही दिखता है अगला
वसंत
पिछली पत्तियाँ जैसे पहला प्रारूप कविता का
झाड़ दिये सारे वर्ण
पंक्ति—दर—पंक्ति पेड़ों के आत्म विवरण की नई
लिखावट
फिर से क्षर —अक्षर उभार लाई रक्त में
फटी, पुरती एड़ियों सहित हाथ चमकने लगे हैं
पपड़ीली मुस्कान भी स्निग्ध हुई
आत्मा के जूते की तरह शरीर की मरम्मत कर दी
वसंत ने
हर एक की चेतना में बैठे आदिम चर्मकार
तुझको नमस्कार !