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"एक मज़बूर माँ / भावना कुँअर" के अवतरणों में अंतर
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+ | बड़ी धनवान औ | ||
+ | सक्षम कभी | ||
+ | हो गई मज़बूर | ||
+ | मैं आज बड़ी। | ||
+ | मेरे रिश्तों की टूटी | ||
+ | जब से कड़ी। | ||
+ | हुई मुझसे इक | ||
+ | बड़ी -सी भूल | ||
+ | बँध करके मैंने | ||
+ | मोहपाश में | ||
+ | अपना घर,धन | ||
+ | सब दे डाला। | ||
+ | अब बूढ़ी हो चली | ||
+ | काँपते हाथ | ||
+ | पर पेट की भूख | ||
+ | खूब सताती। | ||
+ | घुटनों से बेकार | ||
+ | पर फिर भी | ||
+ | घर-घर हूँ जाती। | ||
+ | पूरे दिन मैं | ||
+ | मेहनत करती | ||
+ | तब जाकर | ||
+ | कहीं भूख मिटाती। | ||
+ | सँभाले मैंने | ||
+ | पाँच-पाँच थे बेटे। | ||
+ | पर उनसे | ||
+ | अब देखो ये कैसे | ||
+ | लाचार, बूढ़ी | ||
+ | बेबस,अकेली माँ | ||
+ | नहीं सँभाले जाती। | ||
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04:16, 11 जुलाई 2018 के समय का अवतरण
जी हाँ, मैं माँ हूँ
एक मज़बूर माँ
मैं भी होती थी
बड़ी धनवान औ
सक्षम कभी
हो गई मज़बूर
मैं आज बड़ी।
मेरे रिश्तों की टूटी
जब से कड़ी।
हुई मुझसे इक
बड़ी -सी भूल
बँध करके मैंने
मोहपाश में
अपना घर,धन
सब दे डाला।
अब बूढ़ी हो चली
काँपते हाथ
पर पेट की भूख
खूब सताती।
घुटनों से बेकार
पर फिर भी
घर-घर हूँ जाती।
पूरे दिन मैं
मेहनत करती
तब जाकर
कहीं भूख मिटाती।
सँभाले मैंने
पाँच-पाँच थे बेटे।
पर उनसे
अब देखो ये कैसे
लाचार, बूढ़ी
बेबस,अकेली माँ
नहीं सँभाले जाती।