Last modified on 30 सितम्बर 2009, at 19:31

"जानकर अनजान बन जा / हरिवंशराय बच्चन" के अवतरणों में अंतर

 
(एक अन्य सदस्य द्वारा किये गये बीच के 2 अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति 4: पंक्ति 4:
 
|संग्रह=आकुल अंतर / हरिवंशराय बच्चन
 
|संग्रह=आकुल अंतर / हरिवंशराय बच्चन
 
}}
 
}}
 
+
{{KKCatKavita}}
 
जानकर अनजान बन जा।
 
जानकर अनजान बन जा।
  
  
पूछ मत आराध्‍य कैसा,
+
पूछ मत आराध्य कैसा,
  
 
जब कि पूजा-भाव उमड़ा;
 
जब कि पूजा-भाव उमड़ा;
पंक्ति 23: पंक्ति 23:
 
पथ मिला, मिट्टी सिधारी,
 
पथ मिला, मिट्टी सिधारी,
  
कल्‍पना की वंचना से
+
कल्पना की वंचना से
  
 
सत्‍य से अज्ञान बन जा।
 
सत्‍य से अज्ञान बन जा।
पंक्ति 36: पंक्ति 36:
 
किंतु होना, हाय, अपने आप
 
किंतु होना, हाय, अपने आप
  
हतविश्‍वास कब तक?
+
हत विश्वास कब तक?
  
 
अग्नि को अंदर छिपाकर,
 
अग्नि को अंदर छिपाकर,

19:31, 30 सितम्बर 2009 के समय का अवतरण

जानकर अनजान बन जा।


पूछ मत आराध्य कैसा,

जब कि पूजा-भाव उमड़ा;

मृत्तिका के पिंड से कह दे

कि तू भगवान बन जा।

जानकर अनजान बन जा।


आरती बनकर जला तू

पथ मिला, मिट्टी सिधारी,

कल्पना की वंचना से

सत्‍य से अज्ञान बन जा।

जानकर अनजान बन जा।


किंतु दिल की आग का

संसार में उपहास कब तक?

किंतु होना, हाय, अपने आप

हत विश्वास कब तक?

अग्नि को अंदर छिपाकर,

हे हृदय, पाषाण बन जा।

जानकर अनजान बन जा।