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अवसादी मन! / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
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05:24, 13 फ़रवरी 2019
हिम गलेगा निश्चय मानो,
'''
मौन भी टूटेगा,
'''
असंवादी जीवन का पहरा
'''कभी तो छूटेगा।'''
आशा का मन में ये उजाला
'''किरनें बन फूटेगा।'''
हिम गलेगा निश्चय मानो,
'''
मौन भी
टूटेगा
रूठेगा
।
'''
वीरबाला
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