भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"अवसादी मन! / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु' }} {{KKCatKavita...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
|||
पंक्ति 10: | पंक्ति 10: | ||
हिम गलेगा निश्चय मानो, | हिम गलेगा निश्चय मानो, | ||
− | मौन भी टूटेगा, | + | '''मौन भी टूटेगा,''' |
असंवादी जीवन का पहरा | असंवादी जीवन का पहरा | ||
'''कभी तो छूटेगा।''' | '''कभी तो छूटेगा।''' | ||
पंक्ति 21: | पंक्ति 21: | ||
आशा का मन में ये उजाला | आशा का मन में ये उजाला | ||
'''किरनें बन फूटेगा।''' | '''किरनें बन फूटेगा।''' | ||
− | |||
हिम गलेगा निश्चय मानो, | हिम गलेगा निश्चय मानो, | ||
− | मौन भी | + | '''मौन भी रूठेगा ।''' |
10:54, 13 फ़रवरी 2019 के समय का अवतरण
सुन रे ओ अवसादी मन!
बहुत नहीं तेरा जीवन ।
हिम गलेगा निश्चय मानो,
मौन भी टूटेगा,
असंवादी जीवन का पहरा
कभी तो छूटेगा।
चुप्पी का है
कोहरा छाया
कुछ नहीं सूझे
मन भरमाया ।
आशा का मन में ये उजाला
किरनें बन फूटेगा।
हिम गलेगा निश्चय मानो,
मौन भी रूठेगा ।