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"घंटा / सुमित्रानंदन पंत" के अवतरणों में अंतर
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− | नभ की है उस नीली चुप्पी पर | + | <poem> |
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− | परियों के बच्चों से प्रियतर, | + | कुछ कहता रहता बज बज कर। |
− | फैला कोमल ध्वनियों के पर | + | परियों के बच्चों से प्रियतर, |
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− | घोंसला बनाते उसके स्वर। | + | कानों के भीतर उतर उतर |
− | भरते वे मन में मधुर रोर | + | घोंसला बनाते उसके स्वर। |
− | "जागो रे जागो, काम चोर! | + | भरते वे मन में मधुर रोर |
− | डूबे प्रकाश में दिशा छोर | + | "जागो रे जागो, काम चोर! |
− | अब हुआ भोर, अब हुआ भोर!" | + | डूबे प्रकाश में दिशा छोर |
− | "आई सोने की नई प्रात | + | अब हुआ भोर, अब हुआ भोर!" |
− | कुछ नया काम हो, नई बात, | + | "आई सोने की नई प्रात |
− | तुम रहो स्वच्छ मन, स्वच्छ गात, | + | कुछ नया काम हो, नई बात, |
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+ | निद्रा छोडो, रे गई, रात! | ||
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00:47, 13 अक्टूबर 2009 के समय का अवतरण
नभ की है उस नीली चुप्पी पर
घंटा है एक टंगा सुन्दर,
जो घडी घडी मन के भीतर
कुछ कहता रहता बज बज कर।
परियों के बच्चों से प्रियतर,
फैला कोमल ध्वनियों के पर
कानों के भीतर उतर उतर
घोंसला बनाते उसके स्वर।
भरते वे मन में मधुर रोर
"जागो रे जागो, काम चोर!
डूबे प्रकाश में दिशा छोर
अब हुआ भोर, अब हुआ भोर!"
"आई सोने की नई प्रात
कुछ नया काम हो, नई बात,
तुम रहो स्वच्छ मन, स्वच्छ गात,
निद्रा छोडो, रे गई, रात!