Last modified on 21 अप्रैल 2021, at 23:11

"वे जो मातम नहीं जानते/ जहीर कुरैशी" के अवतरणों में अंतर

 
(एक अन्य सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया)
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
 
{{KKGlobal}}
 
{{KKGlobal}}
 
{{KKRachna
 
{{KKRachna
| रचनाकार=जहीर कुरैशी
+
|रचनाकार=जहीर कुरैशी
}} <poem>
+
|संग्रह=भीड़ में सबसे अलग / जहीर कुरैशी
 
+
}}
 +
[[Category:ग़ज़ल]]
 +
<poem>
 
वे जो मातम नहीं जानते
 
वे जो मातम नहीं जानते
 
आँख है नम, नहीं जानते
 
आँख है नम, नहीं जानते

23:11, 21 अप्रैल 2021 के समय का अवतरण

वे जो मातम नहीं जानते
आँख है नम, नहीं जानते

कल उन्हें कौन फहराएगा
ये भी परचम नहीं जानते

वे दिमागों के मजदूर हैं
वे परिश्रम नहीं जानते

इसलिए भी सुरक्षित हो तुम
कोई जोखम नहीं जानते !

ये विजेता का संसार है
अंधे अणुबम नहीं जानते

प्यार करने का निश्चित समय
मन के मौसम नहीं जानते

जन्मती है कहाँ रोशनी
आजतक तम नहीं जानते