"परिचय / रामधारी सिंह "दिनकर"" के अवतरणों में अंतर
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सलिल कण हूँ, या पारावार हूँ मैं | सलिल कण हूँ, या पारावार हूँ मैं | ||
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स्वयं छाया, स्वयं आधार हूँ मैं | स्वयं छाया, स्वयं आधार हूँ मैं | ||
− | + | बँधा हूँ, स्वप्न हूँ, लघु वृत हूँ मैं | |
− | बँधा हूँ, | + | |
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नहीं तो व्योम का विस्तार हूँ मैं | नहीं तो व्योम का विस्तार हूँ मैं | ||
− | + | समाना चाहता, जो बीन उर में | |
− | समाना चाहता | + | विकल उस शून्य की झंकार हूँ मैं |
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− | विकल उस | + | |
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भटकता खोजता हूँ, ज्योति तम में | भटकता खोजता हूँ, ज्योति तम में | ||
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सुना है ज्योति का आगार हूँ मैं | सुना है ज्योति का आगार हूँ मैं | ||
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जिसे निशि खोजती तारे जलाकर | जिसे निशि खोजती तारे जलाकर | ||
− | + | उसी का कर रहा अभिसार हूँ मैं | |
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− | + | ||
जनम कर मर चुका सौ बार लेकिन | जनम कर मर चुका सौ बार लेकिन | ||
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अगम का पा सका क्या पार हूँ मैं | अगम का पा सका क्या पार हूँ मैं | ||
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कली की पंखुडीं पर ओस-कण में | कली की पंखुडीं पर ओस-कण में | ||
− | + | रंगीले स्वप्न का संसार हूँ मैं | |
− | रंगीले | + | |
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मुझे क्या आज ही या कल झरुँ मैं | मुझे क्या आज ही या कल झरुँ मैं | ||
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सुमन हूँ, एक लघु उपहार हूँ मैं | सुमन हूँ, एक लघु उपहार हूँ मैं | ||
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मधुर जीवन हुआ कुछ प्राण! जब से | मधुर जीवन हुआ कुछ प्राण! जब से | ||
− | |||
लगा ढोने व्यथा का भार हूँ मैं | लगा ढोने व्यथा का भार हूँ मैं | ||
− | + | रुंदन अनमोल धन कवि का, | |
− | रुंदन अनमोल धन कवि का, इसी से | + | इसी से पिरोता आँसुओं का हार हूँ मैं |
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− | पिरोता आँसुओं का हार हूँ मैं | + | |
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मुझे क्या गर्व हो अपनी विभा का | मुझे क्या गर्व हो अपनी विभा का | ||
− | |||
चिता का धूलिकण हूँ, क्षार हूँ मैं | चिता का धूलिकण हूँ, क्षार हूँ मैं | ||
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पता मेरा तुझे मिट्टी कहेगी | पता मेरा तुझे मिट्टी कहेगी | ||
− | + | समा जिसमें चुका सौ बार हूँ मैं | |
− | समा | + | |
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न देंखे विश्व, पर मुझको घृणा से | न देंखे विश्व, पर मुझको घृणा से | ||
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मनुज हूँ, सृष्टि का श्रृंगार हूँ मैं | मनुज हूँ, सृष्टि का श्रृंगार हूँ मैं | ||
− | |||
पुजारिन, धुलि से मुझको उठा ले | पुजारिन, धुलि से मुझको उठा ले | ||
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तुम्हारे देवता का हार हूँ मैं | तुम्हारे देवता का हार हूँ मैं | ||
− | |||
सुनुँ क्या सिंधु, मैं गर्जन तुम्हारा | सुनुँ क्या सिंधु, मैं गर्जन तुम्हारा | ||
− | |||
स्वयं युग-धर्म की हुँकार हूँ मैं | स्वयं युग-धर्म की हुँकार हूँ मैं | ||
− | |||
कठिन निर्घोष हूँ भीषण अशनि का | कठिन निर्घोष हूँ भीषण अशनि का | ||
− | |||
प्रलय-गांडीव की टंकार हूँ मैं | प्रलय-गांडीव की टंकार हूँ मैं | ||
− | |||
दबी सी आग हूँ भीषण क्षुधा का | दबी सी आग हूँ भीषण क्षुधा का | ||
− | |||
दलित का मौन हाहाकार हूँ मैं | दलित का मौन हाहाकार हूँ मैं | ||
− | |||
सजग संसार, तू निज को सम्हाले | सजग संसार, तू निज को सम्हाले | ||
− | |||
प्रलय का क्षुब्ध पारावार हूँ मैं | प्रलय का क्षुब्ध पारावार हूँ मैं | ||
− | + | बंधा तूफान हूँ, चलना मना है | |
− | बंधा | + | |
− | + | ||
बँधी उद्याम निर्झर-धार हूँ मैं | बँधी उद्याम निर्झर-धार हूँ मैं | ||
− | |||
कहूँ क्या कौन हूँ, क्या आग मेरी | कहूँ क्या कौन हूँ, क्या आग मेरी | ||
− | + | बँधी है लेखनी, लाचार हूँ मैं।। | |
− | बँधी है लेखनी, लाचार हूँ | + | </poem> |
01:13, 15 जुलाई 2015 के समय का अवतरण
सलिल कण हूँ, या पारावार हूँ मैं
स्वयं छाया, स्वयं आधार हूँ मैं
बँधा हूँ, स्वप्न हूँ, लघु वृत हूँ मैं
नहीं तो व्योम का विस्तार हूँ मैं
समाना चाहता, जो बीन उर में
विकल उस शून्य की झंकार हूँ मैं
भटकता खोजता हूँ, ज्योति तम में
सुना है ज्योति का आगार हूँ मैं
जिसे निशि खोजती तारे जलाकर
उसी का कर रहा अभिसार हूँ मैं
जनम कर मर चुका सौ बार लेकिन
अगम का पा सका क्या पार हूँ मैं
कली की पंखुडीं पर ओस-कण में
रंगीले स्वप्न का संसार हूँ मैं
मुझे क्या आज ही या कल झरुँ मैं
सुमन हूँ, एक लघु उपहार हूँ मैं
मधुर जीवन हुआ कुछ प्राण! जब से
लगा ढोने व्यथा का भार हूँ मैं
रुंदन अनमोल धन कवि का,
इसी से पिरोता आँसुओं का हार हूँ मैं
मुझे क्या गर्व हो अपनी विभा का
चिता का धूलिकण हूँ, क्षार हूँ मैं
पता मेरा तुझे मिट्टी कहेगी
समा जिसमें चुका सौ बार हूँ मैं
न देंखे विश्व, पर मुझको घृणा से
मनुज हूँ, सृष्टि का श्रृंगार हूँ मैं
पुजारिन, धुलि से मुझको उठा ले
तुम्हारे देवता का हार हूँ मैं
सुनुँ क्या सिंधु, मैं गर्जन तुम्हारा
स्वयं युग-धर्म की हुँकार हूँ मैं
कठिन निर्घोष हूँ भीषण अशनि का
प्रलय-गांडीव की टंकार हूँ मैं
दबी सी आग हूँ भीषण क्षुधा का
दलित का मौन हाहाकार हूँ मैं
सजग संसार, तू निज को सम्हाले
प्रलय का क्षुब्ध पारावार हूँ मैं
बंधा तूफान हूँ, चलना मना है
बँधी उद्याम निर्झर-धार हूँ मैं
कहूँ क्या कौन हूँ, क्या आग मेरी
बँधी है लेखनी, लाचार हूँ मैं।।