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| वक्त का आखेटक | वक्त का आखेटक | ||
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| घूम रहा है | घूम रहा है | ||
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| शर संधान किए | शर संधान किए | ||
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| लगाए है टकटकी | लगाए है टकटकी | ||
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| कि हम | कि हम | ||
| − | + | करें तनिक-सा प्रमाद | |
| − | करें तनिक सा प्रमाद | + | |
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| और, वह | और, वह | ||
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| दबोच ले हमें | दबोच ले हमें | ||
| − | + | तहस-नहस कर दे | |
| − | तहस नहस कर दे | + | |
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| हमारे मिथ्याभिमान को | हमारे मिथ्याभिमान को | ||
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| पर | पर | ||
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| आएगा सतत नैराश्य ही | आएगा सतत नैराश्य ही | ||
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| उसके हिस्से में | उसके हिस्से में | ||
| − | + | क्योंकि | |
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| हमने पहचान ली है | हमने पहचान ली है | ||
| − | + | उसकी पग-ध्वनि | |
| − | उसकी  | + | |
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| दूर हो गया है | दूर हो गया है | ||
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| हमसे | हमसे | ||
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| हमारा तंद्रिल व्यामोह | हमारा तंद्रिल व्यामोह | ||
| − | + | हमने पढ़ लिए हैं | |
| − | + | ||
| − | + | ||
| समय के पंखों पर उभरे | समय के पंखों पर उभरे | ||
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| पुलकित अक्षर | पुलकित अक्षर | ||
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| जिसमें लिखा है कि- | जिसमें लिखा है कि- | ||
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| आओ! | आओ! | ||
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| हम सब मिल कर | हम सब मिल कर | ||
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| खोलें ! | खोलें ! | ||
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| रात की मुठ्ठी को | रात की मुठ्ठी को | ||
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| जिसमें कैद है | जिसमें कैद है | ||
| + | समूचा सूरज !! | ||
| − | + | -डॅा. जगदीश व्योम | |
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10:55, 30 नवम्बर 2023 के समय का अवतरण
वक्त का आखेटक
घूम रहा है
शर संधान किए
लगाए है टकटकी
कि हम
करें तनिक-सा प्रमाद
और, वह
दबोच ले हमें
तहस-नहस कर दे
हमारे मिथ्याभिमान को
पर
आएगा सतत नैराश्य ही
उसके हिस्से में
क्योंकि
हमने पहचान ली है
उसकी पग-ध्वनि
दूर हो गया है
हमसे
हमारा तंद्रिल व्यामोह
हमने पढ़ लिए हैं
समय के पंखों पर उभरे
पुलकित अक्षर
जिसमें लिखा है कि-
आओ!
हम सब मिल कर
खोलें !
रात की मुठ्ठी को
जिसमें कैद है
समूचा सूरज !!
-डॅा. जगदीश व्योम