भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"घर / कुँअर बेचैन" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कुँअर बेचैन }} घर कि जैसे बाँसुरी का स्वर दूर रह ...)
 
 
(2 सदस्यों द्वारा किये गये बीच के 4 अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति 3: पंक्ति 3:
 
|रचनाकार=कुँअर बेचैन
 
|रचनाकार=कुँअर बेचैन
 
}}
 
}}
 
+
<Poem>
 
घर
 
घर
 
 
कि जैसे बाँसुरी का स्वर
 
कि जैसे बाँसुरी का स्वर
 
 
दूर रह कर भी सुनाई दे।
 
दूर रह कर भी सुनाई दे।
 
+
बंद आँखों से दिखाई दे।
बंद आँखों से दिखई दे।
+
 
+
 
+
  
 
दो तटों के बीच
 
दो तटों के बीच
 
 
जैसे जल
 
जैसे जल
 
 
छलछलाते हैं
 
छलछलाते हैं
 
 
विरह के पल
 
विरह के पल
 
  
 
याद
 
याद
 
 
जैसे नववधू, प्रिय के-
 
जैसे नववधू, प्रिय के-
 
 
हाथ में कोमल कलाई दे।
 
हाथ में कोमल कलाई दे।
  
 
+
कक्ष, आंगन, द्वार
कक्ष, आँगन, द्वार
+
 
+
 
नन्हीं छत
 
नन्हीं छत
 
 
याद इन सबको
 
याद इन सबको
 
 
लिखेगी ख़त
 
लिखेगी ख़त
  
 
आँख  
 
आँख  
 
+
अपने अश्रु से ज़्यादा
अपने अश्रु से ज्यादा
+
 
+
 
याद को अब क्या लिखाई दे।
 
याद को अब क्या लिखाई दे।
 +
</poem>

14:07, 10 मई 2009 के समय का अवतरण

घर
कि जैसे बाँसुरी का स्वर
दूर रह कर भी सुनाई दे।
बंद आँखों से दिखाई दे।

दो तटों के बीच
जैसे जल
छलछलाते हैं
विरह के पल

याद
जैसे नववधू, प्रिय के-
हाथ में कोमल कलाई दे।

कक्ष, आंगन, द्वार
नन्हीं छत
याद इन सबको
लिखेगी ख़त

आँख
अपने अश्रु से ज़्यादा
याद को अब क्या लिखाई दे।