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{{KKCatKavita}}
<poem>
जाने क्यों हिचकियों में ही जीता रहा।
जानता सब था; फिर भी पीता रहा।
दूजा घूँट तो नियति हो गई।
'''जीवन-घट मिला; किंतु रीता रहा।'''
जानता सब था; फिर भी पीता रहा।