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आकाश के नीचे, घर में, सेमल के दुलार से स्तम्भित
मैं पदप्रान्त पदतल (तलुवे) से उस स्तम्भ का निरीक्षण करता हूँ ।
जिस तरह वृक्ष के नीचे खड़ा होता है पथिक, उस तरह
अकेले-अकेले देखता हूँ मैं इस सुन्दरता की संग्लिष्ट संश्लिष्ट पताका को ।
अच्छा हो - बुरा हो, मेघ आसमान में फैल जाता है
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