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हो सके तो दुख दो / शक्ति चट्टोपाध्याय / सुलोचना

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हो सके तो दुख दो, मुझे दुख पाना अच्छा लगता है
दो दुख, दुख दो — मुझे दुख पाना अच्छा लगता है ।
तुम सुख लेकर रहो, सुखी रहो, दरवाज़ा खुला है ।

आकाश के नीचे, घर में, सेमल के दुलार से स्तम्भित
मैं पदतल (तलुवे) से उस स्तम्भ का निरीक्षण करता हूँ ।
जिस तरह वृक्ष के नीचे खड़ा होता है पथिक, उस तरह
 
अकेले-अकेले देखता हूँ मैं इस सुन्दरता की संश्लिष्ट पताका को ।

अच्छा हो - बुरा हो, मेघ आसमान में फैल जाता है
मुझे गले लगाती है हवा, अपनी बाहों में ले लेती है ।
दिल उसे रखता है, मुँह कहता है — 'न रखना सुख में, प्रिय सखी' !
हो सके तो दुख दो, मुझे दुख पाना अच्छा लगता है
दो दुख, दुख दो — मुझे दुख पाना अच्छा लगता है ।
अच्छा लगता है मुझे फूलों में काँटा, अच्छा लगता है, भूल में मनस्ताप —
अच्छा लगता है मुझे सिर्फ़ तट पर बैठे रहना पत्थर की तरह
नदी में है बहुत जल, प्रेम, निर्मल जल —
डर लगता है ।

मूल बांग्ला से अनुवाद : सुलोचना

लीजिए, अब यही कविता मूल बांग्ला में पढ़िए
                 শক্তি চট্টোপাধ্যায়
               যদি পারো দুঃখ দাও

যদি পারো দুঃখ দাও, আমি দুঃখ পেতে ভালোবাসি
দাও দুঃখ, দুঃখ দাও – আমি দুঃখ পেতে ভালোবাসি।
তুমি সুখ নিয়ে থাকো, সুখে থাকো, দরজা হাট-খোলা।

আকাশের নিচে, ঘরে , শিমূলের সোহাগে স্তম্ভিত
আমি পদপ্রান্ত থেকে সেই স্তম্ভ নিরীক্ষণ করি।
যেভাবে বৃক্ষের নিচে দাঁড়ায় পথিক, সেইভাবে
একা একা দেখি ঐ সুন্দরের সংশ্লিষ্ট পতাকা।

ভালো হোক মন্দ হোক যায় মেঘ আকাশে ছড়িয়ে
আমাকে জড়িয়ে ধরে হাওয়া তার বন্ধনে বাহুর।
বুকে রাখে, মুখে রাখে – ‘না রাখিও সুখে প্রিয়সখি!
যদি পারো দুঃখ দাও আমি দুঃখ পেতে ভালোবাসি
দাও দুঃখ, দুঃখ দাও – আমি দুঃখ পেতে ভালোবাসি।
ভালোবাসি ফুলে কাঁটা, ভালোবাসি, ভুলে মনস্তাপ –
ভালোবাসি শুধু কূলে বসে থাকা পাথরের মতো
নদীতে অনেক জল, ভালোবাসা, নম্রনীল জল –
ভয় করে।