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<div class='boxheader' style='background-color:#DD5511; color:#ffffff'>'''&nbsp;सप्ताह की कविता'''</div>
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&nbsp;&nbsp;'''शीर्षक:''' जो जीवन की धूल चाट कर बड़ा हुआ है <br>
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खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार</div>
&nbsp;&nbsp;'''रचनाकार:''' [[केदारनाथ अग्रवाल]]
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जो जीवन की धूल चाट कर बड़ा हुआ है
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रचनाकार: [[त्रिलोचन]]
तूफ़ानों से लड़ा और फिर खड़ा हुआ है
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जिसने सोने को खोदा लोहा मोड़ा है
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जो रवि के रथ का घोड़ा है
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<div style="background: #fff; border: 1px solid #ccc; box-shadow: 0 0 10px #ccc inset; font-size: 16px; margin: 0 auto; padding: 0 20px; white-space: pre;">
वह जन मारे नहीं मरेगा
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खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार
नहीं मरेगा
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अपरिचित पास आओ
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जो जीवन की आग जला कर आग बना है
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आँखों में सशंक जिज्ञासा
फौलादी पंजे फैलाए नाग बना है
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मिक्ति कहाँ, है अभी कुहासा
जिसने शोषण को तोड़ा शासन मोड़ा है
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जहाँ खड़े हैं, पाँव जड़े हैं
जो युग के रथ का घोड़ा है
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स्तम्भ शेष भय की परिभाषा
वह जन मारे नहीं मरेगा
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हिलो-मिलो फिर एक डाल के
नहीं मरेगा
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खिलो फूल-से, मत अलगाओ
</pre>
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सबमें अपनेपन की माया
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अपने पन में जीवन आया
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19:38, 7 मार्च 2015 के समय का अवतरण

खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार

रचनाकार: त्रिलोचन

खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार अपरिचित पास आओ

आँखों में सशंक जिज्ञासा मिक्ति कहाँ, है अभी कुहासा जहाँ खड़े हैं, पाँव जड़े हैं स्तम्भ शेष भय की परिभाषा हिलो-मिलो फिर एक डाल के खिलो फूल-से, मत अलगाओ

सबमें अपनेपन की माया अपने पन में जीवन आया