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<div class='boxheader' style='background-color:#DD5511; color:#ffffff'>'''&nbsp;सप्ताह की कविता'''</div>
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&nbsp;&nbsp;'''शीर्षक:''' शासन की बन्दूक <br>
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&nbsp;&nbsp;'''रचनाकार:''' [[नागार्जुन]]
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खड़ी हो गई चाँपकर कंकालों की हूक
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नभ में विपुल विराट-सी शासन की बंदूक
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उस हिटलरी गुमान पर सभी रहें है थूक
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जिसमें कानी हो गई शासन की बंदूक
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खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार</div>
  
बढ़ी बधिरता दस गुनी, बने विनोबा मूक
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<div style="text-align: center;">
धन्य-धन्य वह, धन्य वह, शासन की बंदूक
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रचनाकार: [[त्रिलोचन]]
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सत्य स्वयं घायल हुआ, गई अहिंसा चूक
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<div style="background: #fff; border: 1px solid #ccc; box-shadow: 0 0 10px #ccc inset; font-size: 16px; margin: 0 auto; padding: 0 20px; white-space: pre;">
जहाँ-तहाँ दगने लगी शासन की बंदूक
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खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार
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अपरिचित पास आओ
  
जली ठूँठ पर बैठकर गई कोकिला कूक
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आँखों में सशंक जिज्ञासा
बाल न बाँका कर सकी शासन की बंदूक
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मिक्ति कहाँ, है अभी कुहासा
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जहाँ खड़े हैं, पाँव जड़े हैं
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स्तम्भ शेष भय की परिभाषा
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हिलो-मिलो फिर एक डाल के
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खिलो फूल-से, मत अलगाओ
  
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सबमें अपनेपन की माया
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अपने पन में जीवन आया
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19:38, 7 मार्च 2015 के समय का अवतरण

खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार

रचनाकार: त्रिलोचन

खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार अपरिचित पास आओ

आँखों में सशंक जिज्ञासा मिक्ति कहाँ, है अभी कुहासा जहाँ खड़े हैं, पाँव जड़े हैं स्तम्भ शेष भय की परिभाषा हिलो-मिलो फिर एक डाल के खिलो फूल-से, मत अलगाओ

सबमें अपनेपन की माया अपने पन में जीवन आया