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हंस माला चल, बुलाता है तुझे फिर मानसर 
  
शून्य है तेरे लिए मधुमास के नभ की डगर<br>
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शून्य है तेरे लिए मधुमास के नभ की डगर  
हिम तले जो खो गयी थीं, शीत के डर सो गयी थी<br>
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हिम तले जो खो गयी थीं, शीत के डर सो गयी थी  
फिर जगी होगी नये अनुराग को लेकर लहर<br>
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फिर जगी होगी नये अनुराग को लेकर लहर  
हंस माला चल, बुलाता है तुझे फिर मानसर<br><br>
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हंस माला चल, बुलाता है तुझे फिर मानसर
  
बहुत दिन लोहित रहा नभ, बहुत दिन थी अवनि हतप्रभ<br>
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बहुत दिन लोहित रहा नभ, बहुत दिन थी अवनि हतप्रभ  
शुभ्र-पंखों की छटा भी देख लें अब नारि-नर<br>
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शुभ्र-पंखों की छटा भी देख लें अब नारि-नर  
हंस माला चल, बुलाता है तुझे फिर मानसर<br><br>
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हंस माला चल, बुलाता है तुझे फिर मानसर
  
पक्ष अँधियारा जगत का, जब मनुज अघ में निरत था<br>
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पक्ष अँधियारा जगत का, जब मनुज अघ में निरत था  
हो चुका निःशेष, फैला फिर गगन में शुक्ल पर<br>
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हो चुका निःशेष, फैला फिर गगन में शुक्ल पर  
हंस माला चल, बुलाता है तुझे फिर मानसर<br><br>
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हंस माला चल, बुलाता है तुझे फिर मानसर
  
विविधता के सत विमर्षों में उत्पछता रहा वर्षों<br>
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विविधता के सत विमर्षों में उत्पछता रहा वर्षों  
पर थका यह विश्व नव निष्कर्ष में जाये निखर<br>
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पर थका यह विश्व नव निष्कर्ष में जाये निखर  
हंस माला चल, बुलाता है तुझे फिर मानसर<br><br>
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हंस माला चल, बुलाता है तुझे फिर मानसर
  
इन्द्र-धनु नभ-बीच खिल कर, शुभ्र हो सत-रंग मिलकर<br>
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इन्द्र-धनु नभ-बीच खिल कर, शुभ्र हो सत-रंग मिलकर  
गगन में छा जाय विद्युज्ज्योति के उद्दाम शर<br>
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गगन में छा जाय विद्युज्ज्योति के उद्दाम शर  
हंस माला चल, बुलाता है तुझे फिर मानसर<br><br>
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हंस माला चल, बुलाता है तुझे फिर मानसर
  
शान्ति की सितपंख भाषा, बन जगत की नयी आशा<br>
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शान्ति की सितपंख भाषा, बन जगत की नयी आशा  
उड निराशा के गगन में, हंसमाला, तू निडर<br>
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उड निराशा के गगन में, हंसमाला, तू निडर  
हंस माला चल, बुलाता है तुझे फिर मानसर<br><br>
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हंस माला चल, बुलाता है तुझे फिर मानसर
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12:45, 8 दिसम्बर 2009 के समय का अवतरण

हंस माला चल, बुलाता है तुझे फिर मानसर

शून्य है तेरे लिए मधुमास के नभ की डगर
हिम तले जो खो गयी थीं, शीत के डर सो गयी थी
फिर जगी होगी नये अनुराग को लेकर लहर
हंस माला चल, बुलाता है तुझे फिर मानसर

बहुत दिन लोहित रहा नभ, बहुत दिन थी अवनि हतप्रभ
शुभ्र-पंखों की छटा भी देख लें अब नारि-नर
हंस माला चल, बुलाता है तुझे फिर मानसर

पक्ष अँधियारा जगत का, जब मनुज अघ में निरत था
हो चुका निःशेष, फैला फिर गगन में शुक्ल पर
हंस माला चल, बुलाता है तुझे फिर मानसर

विविधता के सत विमर्षों में उत्पछता रहा वर्षों
पर थका यह विश्व नव निष्कर्ष में जाये निखर
हंस माला चल, बुलाता है तुझे फिर मानसर

इन्द्र-धनु नभ-बीच खिल कर, शुभ्र हो सत-रंग मिलकर
गगन में छा जाय विद्युज्ज्योति के उद्दाम शर
हंस माला चल, बुलाता है तुझे फिर मानसर

शान्ति की सितपंख भाषा, बन जगत की नयी आशा
उड निराशा के गगन में, हंसमाला, तू निडर
हंस माला चल, बुलाता है तुझे फिर मानसर