"मैं तुझे फिर मिलूँगी / अमृता प्रीतम" के अवतरणों में अंतर
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अमृता प्रीतम |संग्रह= }} Category:कविता <poem> मैं तुझे फ...) |
Sharda suman (चर्चा | योगदान) |
||
(6 सदस्यों द्वारा किये गये बीच के 11 अवतरण नहीं दर्शाए गए) | |||
पंक्ति 4: | पंक्ति 4: | ||
|संग्रह= | |संग्रह= | ||
}} | }} | ||
− | [[Category: | + | [[Category:पंजाबी भाषा]] |
− | <poem> | + | {{KKCatNazm}} |
− | + | {{KKPrasiddhRachna}} | |
− | + | {{KKVID|v=qk2xIL4nR1A}} | |
− | मैं तुझे | + | <poem> |
− | कहाँ | + | मैं तुझे फिर मिलूँगी |
− | शायद | + | कहाँ कैसे पता नहीं |
− | तेरे केनवास पर | + | शायद तेरे कल्पनाओं |
+ | की प्रेरणा बन | ||
+ | तेरे केनवास पर उतरुँगी | ||
या तेरे केनवास पर | या तेरे केनवास पर | ||
एक रहस्यमयी लकीर बन | एक रहस्यमयी लकीर बन | ||
− | + | ख़ामोश तुझे देखती रहूँगी | |
− | या | + | मैं तुझे फिर मिलूँगी |
− | तेरे रंगो में घुलती | + | कहाँ कैसे पता नहीं |
− | या रंगो | + | |
− | तेरे केनवास | + | या सूरज की लौ बन कर |
+ | तेरे रंगो में घुलती रहूँगी | ||
+ | या रंगो की बाँहों में बैठ कर | ||
+ | तेरे केनवास पर बिछ जाऊँगी | ||
पता नहीं कहाँ किस तरह | पता नहीं कहाँ किस तरह | ||
− | पर तुझे | + | पर तुझे ज़रुर मिलूँगी |
− | या | + | या फिर एक चश्मा बनी |
जैसे झरने से पानी उड़ता है | जैसे झरने से पानी उड़ता है | ||
मैं पानी की बूंदें | मैं पानी की बूंदें | ||
− | तेरे बदन पर | + | तेरे बदन पर मलूँगी |
− | और एक | + | और एक शीतल अहसास बन कर |
− | तेरे सीने से | + | तेरे सीने से लगूँगी |
− | + | मैं और तो कुछ नहीं जानती | |
− | मैं और कुछ | + | |
पर इतना जानती हूँ | पर इतना जानती हूँ | ||
− | कि वक्त | + | कि वक्त जो भी करेगा |
यह जनम मेरे साथ चलेगा | यह जनम मेरे साथ चलेगा | ||
− | यह जिस्म | + | यह जिस्म ख़त्म होता है |
− | तो सब कुछ | + | तो सब कुछ ख़त्म हो जाता है |
− | पर | + | पर यादों के धागे |
− | कायनात के | + | कायनात के लम्हें की तरह होते हैं |
+ | मैं उन लम्हों को चुनूँगी | ||
+ | उन धागों को समेट लूंगी | ||
+ | मैं तुझे फिर मिलूँगी | ||
+ | कहाँ कैसे पता नहीं | ||
− | + | मैं तुझे फिर मिलूँगी!! | |
− | मैं तुझे | + | </poem> |
− | <poem> | + |
17:23, 16 फ़रवरी 2022 के समय का अवतरण
कृपया kavitakosh AT gmail.com पर सूचना दें
मैं तुझे फिर मिलूँगी
कहाँ कैसे पता नहीं
शायद तेरे कल्पनाओं
की प्रेरणा बन
तेरे केनवास पर उतरुँगी
या तेरे केनवास पर
एक रहस्यमयी लकीर बन
ख़ामोश तुझे देखती रहूँगी
मैं तुझे फिर मिलूँगी
कहाँ कैसे पता नहीं
या सूरज की लौ बन कर
तेरे रंगो में घुलती रहूँगी
या रंगो की बाँहों में बैठ कर
तेरे केनवास पर बिछ जाऊँगी
पता नहीं कहाँ किस तरह
पर तुझे ज़रुर मिलूँगी
या फिर एक चश्मा बनी
जैसे झरने से पानी उड़ता है
मैं पानी की बूंदें
तेरे बदन पर मलूँगी
और एक शीतल अहसास बन कर
तेरे सीने से लगूँगी
मैं और तो कुछ नहीं जानती
पर इतना जानती हूँ
कि वक्त जो भी करेगा
यह जनम मेरे साथ चलेगा
यह जिस्म ख़त्म होता है
तो सब कुछ ख़त्म हो जाता है
पर यादों के धागे
कायनात के लम्हें की तरह होते हैं
मैं उन लम्हों को चुनूँगी
उन धागों को समेट लूंगी
मैं तुझे फिर मिलूँगी
कहाँ कैसे पता नहीं
मैं तुझे फिर मिलूँगी!!