Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) |
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21:20, 5 मई 2011 के समय का अवतरण
लतरें हैं, ख़ुशबू है,पौधे हैं, फूल हैं ।
ऊँचे दरख़्त कहीं, झाड़ कहीं ,शूल हैं ।
लान में उगाई तरतीबवार घास है ।
इधर-उधर बाक़ी सब मौसम उदास है ।
आधी से ज़्यादा तो ज़मीन बेकार है ।
उगे की सुरक्षा ही माली को भार है ।
लोहे का फाटक है, फाटक पर बोर्ड है ।
दृश्य कुछ यह पुराने माडल की फ़ोर्ड है ।
भँवरों का, बुलबुल का, सौरभ का भाग है ।
शहर में हमारे यही कम्पनी बाग़ है ।