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मायातीत, महेश्वर मन-वच-बुद्धि परे॥ जय..<BR>
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मायातीत, महेश्वर मन-वच-बुद्धि परे॥  
आदि, अनादि, अगोचर, अविचल, अविनाशी।<BR>
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अतुल, अनन्त, अनामय, अमित, शक्ति-राशि॥ जय..<BR>
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आदि, अनादि, अगोचर, अविचल, अविनाशी।
अमल, अकल, अज, अक्षय, अव्यय, अविकारी।<BR>
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अतुल, अनन्त, अनामय, अमित, शक्ति-राशि॥  
सत-चित-सुखमय, सुन्दर शिव सत्ताधारी॥ जय..<BR>
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विधि-हरि-शंकर-गणपति-सूर्य-शक्तिरूपा।<BR>
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अमल, अकल, अज, अक्षय, अव्यय, अविकारी।
विश्व चराचर तुम ही, तुम ही विश्वभूपा॥ जय..<BR>
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सत-चित-सुखमय, सुन्दर शिव सत्ताधारी॥  
माता-पिता-पितामह-स्वामि-सुहृद्-भर्ता।<BR>
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विश्वोत्पादक पालक रक्षक संहर्ता॥ जय..<BR>
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विधि-हरि-शंकर-गणपति-सूर्य-शक्तिरूपा।
साक्षी, शरण, सखा, प्रिय प्रियतम, पूर्ण प्रभो।<BR>
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विश्व चराचर तुम ही, तुम ही विश्वभूपा॥  
केवल-काल कलानिधि, कालातीत, विभो॥ जय..<BR>
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राम-कृष्ण करुणामय, प्रेमामृत-सागर।<BR>
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माता-पिता-पितामह-स्वामि-सुहृद्-भर्ता।
मन-मोहन मुरलीधर नित-नव नटनागर॥ जय..<BR>
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विश्वोत्पादक पालक रक्षक संहर्ता॥  
सब विधि-हीन, मलिन-मति, हम अति पातकि-जन।<BR>
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प्रभुपद-विमुख अभागी, कलि-कलुषित तन मन॥ जय..<BR>
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साक्षी, शरण, सखा, प्रिय प्रियतम, पूर्ण प्रभो।
आश्रय-दान दयार्णव! हम सबको दीजै।<BR>
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केवल-काल कलानिधि, कालातीत, विभो॥  
पाप-ताप हर हरि! सब, निज-जन कर लीजै॥ जय..<BR>
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श्री रामकृष्ण गोपाल दामोदर, नारायण नरसिंह हरी। <BR>
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राम-कृष्ण करुणामय, प्रेमामृत-सागर।
जहां-जहां भीर पड़ी भक्तों पर, तहां-तहां रक्षा आप करी॥ श्री रामकृष्ण ..<BR>
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मन-मोहन मुरलीधर नित-नव नटनागर॥  
भीर पड़ी प्रहलाद भक्त पर, नरसिंह अवतार लिया।<BR>
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अपने भक्तों की रक्षा कारण, हिरणाकुश को मार दिया॥ श्री रामकृष्ण ..<BR>
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सब विधि-हीन, मलिन-मति, हम अति पातकि-जन।
होने लगी जब नग्न द्रोपदी, दु:शासन चीर हरण किया।<BR>
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प्रभुपद-विमुख अभागी, कलि-कलुषित तन मन॥  
अरब-खरब के वस्त्र देकर आस पास प्रभु फिरने लगे॥ श्री रामकृष्ण ..<BR>
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गज की टेर सुनी मेरे मोहन तत्काल प्रभु उठ धाये।<BR>
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आश्रय-दान दयार्णव! हम सबको दीजै।
जौ भर सूंड रहे जल ऊपर, ऐसे गज को खेंच लिया॥ श्री रामकृष्ण ..<BR>
+
पाप-ताप हर हरि! सब, निज-जन कर लीजै॥  
नामदेव की गउआ बाईया, नरसी हुण्डी को तारा।<BR>
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माता-पिता के फन्द छुड़ाये, हाँ! कंस दुशासन को मारा॥ श्री रामकृष्ण ..<BR>
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जैसी कृपा भक्तों पर कीनी हाँ करो मेरे गिरधारी।<BR>
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तेरे दास की यही भावना दर्श दियो मैंनू गिरधारी॥ श्री रामकृष्ण ..<BR>
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श्री रामकृष्ण गोपाल दामोदर नारायण नरसिंह हरि।<BR>
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जहां-जहां भीर पड़ी भक्तों पर वहां-वहां रक्षा आप करी॥
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16:37, 30 मई 2014 के समय का अवतरण

अष्टक   ♦   आरतियाँ   ♦   चालीसा   ♦   भजन   ♦   प्रार्थनाएँ   ♦   श्लोक

   
मायातीत, महेश्वर मन-वच-बुद्धि परे॥

आदि, अनादि, अगोचर, अविचल, अविनाशी।
अतुल, अनन्त, अनामय, अमित, शक्ति-राशि॥

अमल, अकल, अज, अक्षय, अव्यय, अविकारी।
सत-चित-सुखमय, सुन्दर शिव सत्ताधारी॥

विधि-हरि-शंकर-गणपति-सूर्य-शक्तिरूपा।
विश्व चराचर तुम ही, तुम ही विश्वभूपा॥

माता-पिता-पितामह-स्वामि-सुहृद्-भर्ता।
विश्वोत्पादक पालक रक्षक संहर्ता॥

साक्षी, शरण, सखा, प्रिय प्रियतम, पूर्ण प्रभो।
केवल-काल कलानिधि, कालातीत, विभो॥

राम-कृष्ण करुणामय, प्रेमामृत-सागर।
मन-मोहन मुरलीधर नित-नव नटनागर॥

सब विधि-हीन, मलिन-मति, हम अति पातकि-जन।
प्रभुपद-विमुख अभागी, कलि-कलुषित तन मन॥

आश्रय-दान दयार्णव! हम सबको दीजै।
पाप-ताप हर हरि! सब, निज-जन कर लीजै॥