भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"सहयात्रा के साठ बरस / रामदरश मिश्र" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रामदरश मिश्र |संग्रह= }} <Poem> साथ-साथ चलते जाना कब स...)
 
 
पंक्ति 4: पंक्ति 4:
 
|संग्रह=
 
|संग्रह=
 
}}
 
}}
 +
{{KKCatKavita‎}}
 
<Poem>
 
<Poem>
 
साथ-साथ चलते जाना कब साठ बरस बीते!
 
साथ-साथ चलते जाना कब साठ बरस बीते!

10:49, 14 मई 2010 के समय का अवतरण

साथ-साथ चलते जाना कब साठ बरस बीते!

एक हाथ में थी कविता, दूजे में थी रोटी
हम तानते रहे दोनों की लय छोटी-छोटी
चलते रहे सफ़र में हम यों ही खाते-पीते!

जब आया जलजला, पाँव काँपने लगे डर से
बढ़कर थाम लिया हमने इक-दूजे को कर से
कितना कुछ टूटा-फूटा, पर हम न कभी रीते!

छोटे-छोटे सुख-पंछी फड़काते थे पाँखें
छोटे-छोटे सपनों से भर आती थीं आँखें
गिरे-पड़े, कुछ हारे-से भी, पर आख़िर जीते!

ख़ुद के गिरने पर उठकर तुम कितना हँसती थीं
पर मेरी छोटी-सी डगमग तुमको डँसती थी
भर आते थे जीवन-रस से, पल विष-से तीते!

जब-जब दूर हुआ घर से, तनहा हो घबराया
तब-तब लगा मुझे, कोई स्वर तुम जैसा आया-
घबराना मत तनहाई से, मैं तो हूँ मीते!