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"अहिंसा / भारत भूषण अग्रवाल" के अवतरणों में अंतर

 
 
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खाना खा कर कमरे में बिस्तर पर लेटा
 
खाना खा कर कमरे में बिस्तर पर लेटा
  
सोच रहा था मैं मन ही मन : 'हिटलर बेटा
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सोच रहा था मैं मन ही मन: 'हिटलर बेटा'
  
बड़ा मूर्ख है,जो लड़ता है तुच्छ-क्षुद्र मिट्टी के कारण
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बड़ा मूर्ख है, जो लड़ता है तुच्छ-क्षुद्र मिट्टी के कारण
  
क्षणभंगुर ही तो है रे ! यह सब वैभव-धन।
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क्षणभंगुर ही तो है रे! यह सब वैभव-धन।
  
 
अन्त लगेगा हाथ न कुछ, दो दिन का मेला।
 
अन्त लगेगा हाथ न कुछ, दो दिन का मेला।
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वे तुझ को बतलायेंगे आत्मा की सत्ता
 
वे तुझ को बतलायेंगे आत्मा की सत्ता
  
होगी प्रकट अहिंसा की तब पूर्ण महत्ता ।
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होगी प्रकट अहिंसा की तब पूर्ण महत्ता।
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कुछ भी तो है नहीं धरा दुनिया के अन्दर।'
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कुछ भी तो है नहीं धरा दुनिया के अन्दर ।'
 
  
छत पर से पत्नी चिल्लायी : " दौड़ो , बन्दर !"
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छत पर से पत्नी चिल्लायी : "दौड़ो , बन्दर!"

20:18, 15 मई 2009 के समय का अवतरण

खाना खा कर कमरे में बिस्तर पर लेटा

सोच रहा था मैं मन ही मन: 'हिटलर बेटा'

बड़ा मूर्ख है, जो लड़ता है तुच्छ-क्षुद्र मिट्टी के कारण

क्षणभंगुर ही तो है रे! यह सब वैभव-धन।

अन्त लगेगा हाथ न कुछ, दो दिन का मेला।

लिखूँ एक ख़त, हो जा गाँधी जी का चेला।

वे तुझ को बतलायेंगे आत्मा की सत्ता

होगी प्रकट अहिंसा की तब पूर्ण महत्ता।

कुछ भी तो है नहीं धरा दुनिया के अन्दर।'


छत पर से पत्नी चिल्लायी : "दौड़ो , बन्दर!"