"कह-मुकरियाँ / अमीर खुसरो" के अवतरणों में अंतर
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) |
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) |
||
(8 सदस्यों द्वारा किये गये बीच के 20 अवतरण नहीं दर्शाए गए) | |||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
− | + | {{KKGlobal}} | |
− | + | {{KKRachna | |
− | + | |रचनाकार=अमीर खुसरो | |
+ | }} | ||
+ | {{KKCatKahMukariyan}} | ||
+ | <poem> | ||
+ | १. | ||
+ | खा गया पी गया | ||
+ | दे गया बुत्ता | ||
+ | ऐ सखि साजन? | ||
+ | ना सखि कुत्ता! | ||
− | + | २. | |
+ | लिपट लिपट के वा के सोई | ||
+ | छाती से छाती लगा के रोई | ||
+ | दांत से दांत बजे तो ताड़ा | ||
+ | ऐ सखि साजन? ना सखि जाड़ा! | ||
− | + | ३. | |
− | + | रात समय वह मेरे आवे | |
− | + | भोर भये वह घर उठि जावे | |
− | ऐ | + | यह अचरज है सबसे न्यारा |
+ | ऐ सखि साजन? ना सखि तारा! | ||
− | + | ४. | |
− | + | नंगे पाँव फिरन नहिं देत | |
− | + | पाँव से मिट्टी लगन नहिं देत | |
− | ऐ | + | पाँव का चूमा लेत निपूता |
+ | ऐ सखि साजन? ना सखि जूता! | ||
− | + | ५. | |
− | + | ऊंची अटारी पलंग बिछायो | |
− | + | मैं सोई मेरे सिर पर आयो | |
− | ऐ | + | खुल गई अंखियां भयी आनंद |
+ | ऐ सखि साजन? ना सखि चांद! | ||
− | + | ६. | |
− | + | जब माँगू तब जल भरि लावे | |
− | + | मेरे मन की तपन बुझावे | |
− | ऐ | + | मन का भारी तन का छोटा |
+ | ऐ सखि साजन? ना सखि लोटा! | ||
− | + | ७. | |
− | + | वो आवै तो शादी होय | |
− | + | उस बिन दूजा और न कोय | |
− | ऐ | + | मीठे लागें वा के बोल |
+ | ऐ सखि साजन? ना सखि ढोल! | ||
− | + | ८. | |
− | + | बेर-बेर सोवतहिं जगावे | |
− | + | ना जागूँ तो काटे खावे | |
− | ऐ | + | व्याकुल हुई मैं हक्की बक्की |
+ | ऐ सखि साजन? ना सखि मक्खी! | ||
− | + | ९. | |
− | + | अति सुरंग है रंग रंगीले | |
− | + | है गुणवंत बहुत चटकीलो | |
− | ऐ | + | राम भजन बिन कभी न सोता |
+ | ऐ सखि साजन? ना सखि तोता! | ||
− | बखत बखत मोए वा की आस | + | १०. |
− | रात दिना ऊ रहत मो पास | + | आप हिले और मोहे हिलाए |
− | मेरे मन को सब करत है | + | वा का हिलना मोए मन भाए |
− | ऐ | + | हिल हिल के वो हुआ निसंखा |
+ | ऐ सखि साजन? ना सखि पंखा! | ||
+ | |||
+ | ११. | ||
+ | अर्ध निशा वह आया भौन | ||
+ | सुंदरता बरने कवि कौन | ||
+ | निरखत ही मन भयो अनंद | ||
+ | ऐ सखि साजन? ना सखि चंद! | ||
+ | |||
+ | १२. | ||
+ | शोभा सदा बढ़ावन हारा | ||
+ | आँखिन से छिन होत न न्यारा | ||
+ | आठ पहर मेरो मनरंजन | ||
+ | ऐ सखि साजन? ना सखि अंजन! | ||
+ | |||
+ | १३. | ||
+ | जीवन सब जग जासों कहै | ||
+ | वा बिनु नेक न धीरज रहै | ||
+ | हरै छिनक में हिय की पीर | ||
+ | ऐ सखि साजन? ना सखि नीर! | ||
+ | |||
+ | १४. | ||
+ | बिन आये सबहीं सुख भूले | ||
+ | आये ते अँग-अँग सब फूले | ||
+ | सीरी भई लगावत छाती | ||
+ | ऐ सखि साजन? ना सखि पाती! | ||
+ | |||
+ | १५. | ||
+ | सगरी रैन छतियां पर राख | ||
+ | रूप रंग सब वा का चाख | ||
+ | भोर भई जब दिया उतार | ||
+ | ऐ सखि साजन? ना सखि हार! | ||
+ | |||
+ | १६. | ||
+ | पड़ी थी मैं अचानक चढ़ आयो | ||
+ | जब उतरयो तो पसीनो आयो | ||
+ | सहम गई नहीं सकी पुकार | ||
+ | ऐ सखि साजन? ना सखि बुखार! | ||
+ | |||
+ | १७. | ||
+ | सेज पड़ी मोरे आंखों आए | ||
+ | डाल सेज मोहे मजा दिखाए | ||
+ | किस से कहूं अब मजा में अपना | ||
+ | ऐ सखि साजन? ना सखि सपना! | ||
+ | |||
+ | १८. | ||
+ | बखत बखत मोए वा की आस | ||
+ | रात दिना ऊ रहत मो पास | ||
+ | मेरे मन को सब करत है काम | ||
+ | ऐ सखि साजन? ना सखि राम! | ||
+ | |||
+ | १९. | ||
+ | सरब सलोना सब गुन नीका | ||
+ | वा बिन सब जग लागे फीका | ||
+ | वा के सर पर होवे कोन | ||
+ | ऐ सखि ‘साजन’ना सखि! लोन(नमक) | ||
+ | |||
+ | २०. | ||
+ | सगरी रैन मिही संग जागा | ||
+ | भोर भई तब बिछुड़न लागा | ||
+ | उसके बिछुड़त फाटे हिया’ | ||
+ | ए सखि ‘साजन’ ना, सखि! दिया(दीपक) | ||
+ | |||
+ | 21. | ||
+ | राह चलत मोरा अंचरा गहे। | ||
+ | मेरी सुने न अपनी कहे | ||
+ | ना कुछ मोसे झगडा-टंटा | ||
+ | ऐ सखि साजन ना सखि कांटा! | ||
+ | |||
+ | 22. | ||
+ | बरसा-बरस वह देस में आवे, | ||
+ | मुँह से मुँह लाग रस प्यावे। | ||
+ | वा खातिर मैं खरचे दाम, | ||
+ | ऐ सखि साजन न सखि! आम।। | ||
+ | |||
+ | 23. | ||
+ | नित मेरे घर आवत है, | ||
+ | रात गए फिर जावत है। | ||
+ | मानस फसत काऊ के फंदा, | ||
+ | ऐ सखि साजन न सखि! चंदा।। | ||
+ | |||
+ | 24. | ||
+ | आठ प्रहर मेरे संग रहे, | ||
+ | मीठी प्यारी बातें करे। | ||
+ | श्याम बरन और राती नैंना, | ||
+ | ऐ सखि साजन न सखि! मैंना।। | ||
+ | |||
+ | 25. | ||
+ | घर आवे मुख घेरे-फेरे, | ||
+ | दें दुहाई मन को हरें, | ||
+ | कभू करत है मीठे बैन, | ||
+ | कभी करत है रुखे नैंन। | ||
+ | ऐसा जग में कोऊ होता, | ||
+ | ऐ सखि साजन न सखि! तोता।। | ||
+ | </poem> |
11:16, 19 सितम्बर 2017 के समय का अवतरण
१.
खा गया पी गया
दे गया बुत्ता
ऐ सखि साजन?
ना सखि कुत्ता!
२.
लिपट लिपट के वा के सोई
छाती से छाती लगा के रोई
दांत से दांत बजे तो ताड़ा
ऐ सखि साजन? ना सखि जाड़ा!
३.
रात समय वह मेरे आवे
भोर भये वह घर उठि जावे
यह अचरज है सबसे न्यारा
ऐ सखि साजन? ना सखि तारा!
४.
नंगे पाँव फिरन नहिं देत
पाँव से मिट्टी लगन नहिं देत
पाँव का चूमा लेत निपूता
ऐ सखि साजन? ना सखि जूता!
५.
ऊंची अटारी पलंग बिछायो
मैं सोई मेरे सिर पर आयो
खुल गई अंखियां भयी आनंद
ऐ सखि साजन? ना सखि चांद!
६.
जब माँगू तब जल भरि लावे
मेरे मन की तपन बुझावे
मन का भारी तन का छोटा
ऐ सखि साजन? ना सखि लोटा!
७.
वो आवै तो शादी होय
उस बिन दूजा और न कोय
मीठे लागें वा के बोल
ऐ सखि साजन? ना सखि ढोल!
८.
बेर-बेर सोवतहिं जगावे
ना जागूँ तो काटे खावे
व्याकुल हुई मैं हक्की बक्की
ऐ सखि साजन? ना सखि मक्खी!
९.
अति सुरंग है रंग रंगीले
है गुणवंत बहुत चटकीलो
राम भजन बिन कभी न सोता
ऐ सखि साजन? ना सखि तोता!
१०.
आप हिले और मोहे हिलाए
वा का हिलना मोए मन भाए
हिल हिल के वो हुआ निसंखा
ऐ सखि साजन? ना सखि पंखा!
११.
अर्ध निशा वह आया भौन
सुंदरता बरने कवि कौन
निरखत ही मन भयो अनंद
ऐ सखि साजन? ना सखि चंद!
१२.
शोभा सदा बढ़ावन हारा
आँखिन से छिन होत न न्यारा
आठ पहर मेरो मनरंजन
ऐ सखि साजन? ना सखि अंजन!
१३.
जीवन सब जग जासों कहै
वा बिनु नेक न धीरज रहै
हरै छिनक में हिय की पीर
ऐ सखि साजन? ना सखि नीर!
१४.
बिन आये सबहीं सुख भूले
आये ते अँग-अँग सब फूले
सीरी भई लगावत छाती
ऐ सखि साजन? ना सखि पाती!
१५.
सगरी रैन छतियां पर राख
रूप रंग सब वा का चाख
भोर भई जब दिया उतार
ऐ सखि साजन? ना सखि हार!
१६.
पड़ी थी मैं अचानक चढ़ आयो
जब उतरयो तो पसीनो आयो
सहम गई नहीं सकी पुकार
ऐ सखि साजन? ना सखि बुखार!
१७.
सेज पड़ी मोरे आंखों आए
डाल सेज मोहे मजा दिखाए
किस से कहूं अब मजा में अपना
ऐ सखि साजन? ना सखि सपना!
१८.
बखत बखत मोए वा की आस
रात दिना ऊ रहत मो पास
मेरे मन को सब करत है काम
ऐ सखि साजन? ना सखि राम!
१९.
सरब सलोना सब गुन नीका
वा बिन सब जग लागे फीका
वा के सर पर होवे कोन
ऐ सखि ‘साजन’ना सखि! लोन(नमक)
२०.
सगरी रैन मिही संग जागा
भोर भई तब बिछुड़न लागा
उसके बिछुड़त फाटे हिया’
ए सखि ‘साजन’ ना, सखि! दिया(दीपक)
21.
राह चलत मोरा अंचरा गहे।
मेरी सुने न अपनी कहे
ना कुछ मोसे झगडा-टंटा
ऐ सखि साजन ना सखि कांटा!
22.
बरसा-बरस वह देस में आवे,
मुँह से मुँह लाग रस प्यावे।
वा खातिर मैं खरचे दाम,
ऐ सखि साजन न सखि! आम।।
23.
नित मेरे घर आवत है,
रात गए फिर जावत है।
मानस फसत काऊ के फंदा,
ऐ सखि साजन न सखि! चंदा।।
24.
आठ प्रहर मेरे संग रहे,
मीठी प्यारी बातें करे।
श्याम बरन और राती नैंना,
ऐ सखि साजन न सखि! मैंना।।
25.
घर आवे मुख घेरे-फेरे,
दें दुहाई मन को हरें,
कभू करत है मीठे बैन,
कभी करत है रुखे नैंन।
ऐसा जग में कोऊ होता,
ऐ सखि साजन न सखि! तोता।।