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"शारदे / महेश अनघ" के अवतरणों में अंतर

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मूर्तिवाला शारदे को
 
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हथौड़े से पीटता है
 
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एक काले दिन
 
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कलमुँही तू दो टके की क्यों गई थी कार में
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क्या वहां साधक मिलेंगे सेठ में सरकार में
 
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खंडिता हो लौट आई हाथ में बख्शीस लेकर
 
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पर्व वाले दिन
 
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तू फ़कीरों कबीरों के वंश की संतान है
 
तू फ़कीरों कबीरों के वंश की संतान है
 
 
साहबों की साज सज्जा के लिए सामान है
 
साहबों की साज सज्जा के लिए सामान है
 
 
इसलिए कच्चे घरों में ओट देकर तुझे पाला
 
इसलिए कच्चे घरों में ओट देकर तुझे पाला
 
 
और टाले दिन
 
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कामना थी पाँव तेरे महावर से मांड़ते
 
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फिर किसी दिन पूज्य स्वर से सात फेरे पाड़ते
 
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क्या करें ऊँचे पदों ने पद दलित कर छंद सारे
क्या करें ऊंचे पदों ने पद दलित कर छंद सारे
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मार डाले दिन
 
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20:58, 19 अप्रैल 2011 के समय का अवतरण

मूर्तिवाला शारदे को
हथौड़े से पीटता है
एक काले दिन

कलमुँही तू दो टके की क्यों गई थी कार में
क्या वहां साधक मिलेंगे सेठ में सरकार में
खंडिता हो लौट आई हाथ में बख्शीस लेकर
पर्व वाले दिन

तू फ़कीरों कबीरों के वंश की संतान है
साहबों की साज सज्जा के लिए सामान है
इसलिए कच्चे घरों में ओट देकर तुझे पाला
और टाले दिन

कामना थी पाँव तेरे महावर से मांड़ते
फिर किसी दिन पूज्य स्वर से सात फेरे पाड़ते
क्या करें ऊँचे पदों ने पद दलित कर छंद सारे
मार डाले दिन