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<div class='boxheader' style='background-color:#DD5511; color:#ffffff'>'''&nbsp;सप्ताह की कविता'''</div>
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&nbsp;&nbsp;'''शीर्षक: '''अंकुर<br>
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खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार</div>
&nbsp;&nbsp;'''रचनाकार:''' [[इब्बार रब्बी]]
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<div style="text-align: center;">
अंकुर जब सिर उठाता है
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रचनाकार: [[त्रिलोचन]]
ज़मीन की छत फोड़ गिराता है
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वह जब अंधेरे में अंगड़ाता है
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मिट्टी का कलेजा फट जाता है
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<div style="background: #fff; border: 1px solid #ccc; box-shadow: 0 0 10px #ccc inset; font-size: 16px; margin: 0 auto; padding: 0 20px; white-space: pre;">
हरी छतरियों की तन जाती है कतार
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खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार
छापामारों के दस्ते सज जाते हैं
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अपरिचित पास आओ
पाँत के पाँत
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नई हो या पुरानी
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आँखों में सशंक जिज्ञासा
वह हर ज़मीन काटता है
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मिक्ति कहाँ, है अभी कुहासा
हरा सिर हिलाता है
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जहाँ खड़े हैं, पाँव जड़े हैं
नन्हा धड़ तानता है
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स्तम्भ शेष भय की परिभाषा
अंकुर आशा का रंग जमाता है।
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हिलो-मिलो फिर एक डाल के
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खिलो फूल-से, मत अलगाओ
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</div><div class='boxbottom'><div></div></div></div>
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सबमें अपनेपन की माया
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अपने पन में जीवन आया
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19:38, 7 मार्च 2015 के समय का अवतरण

खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार

रचनाकार: त्रिलोचन

खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार अपरिचित पास आओ

आँखों में सशंक जिज्ञासा मिक्ति कहाँ, है अभी कुहासा जहाँ खड़े हैं, पाँव जड़े हैं स्तम्भ शेष भय की परिभाषा हिलो-मिलो फिर एक डाल के खिलो फूल-से, मत अलगाओ

सबमें अपनेपन की माया अपने पन में जीवन आया