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<div class='boxheader' style='background-color:#DD5511; color:#ffffff'>'''&nbsp;सप्ताह की कविता'''</div>
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<div style="font-size:120%; color:#a00000; text-align: center;">
&nbsp;&nbsp;'''शीर्षक: '''शहर में रात<br>
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खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार</div>
&nbsp;&nbsp;'''रचनाकार:''' [[केदारनाथ सिंह]]
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<pre style="overflow:auto;height:21em;">
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<div style="text-align: center;">
बिजली चमकी, पानी गिरने का डर है
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रचनाकार: [[त्रिलोचन]]
वे क्यों भागे जाते हैं जिनके घर है
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वे क्यों चुप हैं जिनको आती है भाषा
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वह क्या है जो दिखता है धुँआ-धुआँ-सा
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<div style="background: #fff; border: 1px solid #ccc; box-shadow: 0 0 10px #ccc inset; font-size: 16px; margin: 0 auto; padding: 0 20px; white-space: pre;">
वह क्या है हरा-हरा-सा जिसके आगे
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खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार
हैं उलझ गए जीने के सारे धागे
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अपरिचित पास आओ
यह शहर कि जिसमें रहती है इच्छाएँ
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कुत्ते भुनगे आदमी गिलहरी गाएँ
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आँखों में सशंक जिज्ञासा
यह शहर कि जिसकी ज़िद है सीधी-सादी
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मिक्ति कहाँ, है अभी कुहासा
ज्यादा-से-ज्यादा सुख सुविधा आज़ादी
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जहाँ खड़े हैं, पाँव जड़े हैं
तुम कभी देखना इसे सुलगते क्षण में
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स्तम्भ शेष भय की परिभाषा
यह अलग-अलग दिखता है हर दर्पण में
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हिलो-मिलो फिर एक डाल के
साथियों, रात आई, अब मैं जाता हूँ
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खिलो फूल-से, मत अलगाओ
इस आने-जाने का वेतन पाता हूँ
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जब आँख लगे तो सुनना धीरे-धीरे
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सबमें अपनेपन की माया
किस तरह रात-भर बजती हैं जंज़ीरें
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अपने पन में जीवन आया
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</div><div class='boxbottom'><div></div></div></div>
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19:38, 7 मार्च 2015 के समय का अवतरण

खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार

रचनाकार: त्रिलोचन

खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार अपरिचित पास आओ

आँखों में सशंक जिज्ञासा मिक्ति कहाँ, है अभी कुहासा जहाँ खड़े हैं, पाँव जड़े हैं स्तम्भ शेष भय की परिभाषा हिलो-मिलो फिर एक डाल के खिलो फूल-से, मत अलगाओ

सबमें अपनेपन की माया अपने पन में जीवन आया