"मधुशाला / भाग २ / हरिवंशराय बच्चन" के अवतरणों में अंतर
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− | सब मिट जाएँ, बना रहेगा सुन्दर साकी, यम काला, | + | सब मिट जाएँ, बना रहेगा सुन्दर साकी, यम काला, |
− | सूखें सब रस, बने रहेंगे, किन्तु, हलाहल औ' हाला, | + | सूखें सब रस, बने रहेंगे, किन्तु, हलाहल औ' हाला, |
− | धूमधाम औ' चहल पहल के स्थान सभी सुनसान बनें, | + | धूमधाम औ' चहल पहल के स्थान सभी सुनसान बनें, |
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− | + | बुरा सदा कहलायेगा जग में बाँका, चंचल प्याला, | |
− | छैल छबीला, रसिया साकी, अलबेला पीनेवाला, | + | छैल छबीला, रसिया साकी, अलबेला पीनेवाला, |
− | पटे कहाँ से, | + | पटे कहाँ से, मधुशाला औ' जग की जोड़ी ठीक नहीं, |
− | जग जर्जर प्रतिदन, प्रतिक्षण, पर नित्य नवेली मधुशाला।।२३। | + | जग जर्जर प्रतिदन, प्रतिक्षण, पर नित्य नवेली मधुशाला।।२३। |
− | बिना पिये जो मधुशाला को बुरा कहे, वह मतवाला, | + | बिना पिये जो मधुशाला को बुरा कहे, वह मतवाला, |
− | पी लेने पर तो उसके | + | पी लेने पर तो उसके मुँह पर पड़ जाएगा ताला, |
− | दास द्रोहियों दोनों में है जीत सुरा की, प्याले की, | + | दास द्रोहियों दोनों में है जीत सुरा की, प्याले की, |
− | विश्वविजयिनी बनकर जग में आई मेरी मधुशाला।।२४। | + | विश्वविजयिनी बनकर जग में आई मेरी मधुशाला।।२४। |
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− | सूर्य बने मधु का विक्रेता, सिंधु बने घट, जल, हाला, | + | सूर्य बने मधु का विक्रेता, सिंधु बने घट, जल, हाला, |
− | बादल बन-बन आए साकी, भूमि बने मधु का प्याला, | + | बादल बन-बन आए साकी, भूमि बने मधु का प्याला, |
− | झड़ी लगाकर बरसे मदिरा रिमझिम, रिमझिम, रिमझिम कर, | + | झड़ी लगाकर बरसे मदिरा रिमझिम, रिमझिम, रिमझिम कर, |
− | बेलि, विटप, तृण बन मैं पीऊँ, वर्षा ऋतु हो मधुशाला।।३०। | + | बेलि, विटप, तृण बन मैं पीऊँ, वर्षा ऋतु हो मधुशाला।।३०। |
− | तारक मणियों से सज्जित नभ बन जाए मधु का प्याला, | + | तारक मणियों से सज्जित नभ बन जाए मधु का प्याला, |
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− | मज्ञल्तऌा समीरण साकी बनकर अधरों पर छलका जाए, | + | मज्ञल्तऌा समीरण साकी बनकर अधरों पर छलका जाए, |
− | फैले हों जो सागर तट से विश्व बने यह मधुशाला।।३१। | + | फैले हों जो सागर तट से विश्व बने यह मधुशाला।।३१। |
− | अधरों पर हो कोई भी रस जिह्वा पर लगती हाला, | + | अधरों पर हो कोई भी रस जिह्वा पर लगती हाला, |
− | भाजन हो कोई हाथों में लगता रक्खा है प्याला, | + | भाजन हो कोई हाथों में लगता रक्खा है प्याला, |
− | हर सूरत साकी की सूरत में परिवर्तित हो जाती, | + | हर सूरत साकी की सूरत में परिवर्तित हो जाती, |
− | आँखों के आगे हो कुछ भी, आँखों में है मधुशाला।।३२। | + | आँखों के आगे हो कुछ भी, आँखों में है मधुशाला।।३२। |
− | पौधे आज बने हैं साकी ले ले फूलों का प्याला, | + | पौधे आज बने हैं साकी ले ले फूलों का प्याला, |
− | भरी हुई है जिसके अंदर | + | भरी हुई है जिसके अंदर परिमल-मधु-सुरिभत हाला, |
− | माँग माँगकर भ्रमरों के दल रस की मदिरा पीते हैं, | + | माँग माँगकर भ्रमरों के दल रस की मदिरा पीते हैं, |
− | झूम झपक मद-झंपित होते, उपवन क्या है मधुशाला!।३३। | + | झूम झपक मद-झंपित होते, उपवन क्या है मधुशाला!।३३। |
− | प्रति रसाल तरू साकी सा है, प्रति मंजरिका है प्याला, | + | प्रति रसाल तरू साकी सा है, प्रति मंजरिका है प्याला, |
− | छलक रही है जिसके बाहर मादक सौरभ की हाला, | + | छलक रही है जिसके बाहर मादक सौरभ की हाला, |
− | छक जिसको मतवाली कोयल कूक रही डाली डाली | + | छक जिसको मतवाली कोयल कूक रही डाली डाली |
− | हर मधुऋतु में अमराई में जग उठती है मधुशाला।।३४। | + | हर मधुऋतु में अमराई में जग उठती है मधुशाला।।३४। |
− | मंद झकोरों के प्यालों में मधुऋतु सौरभ की हाला | + | मंद झकोरों के प्यालों में मधुऋतु सौरभ की हाला |
− | भर भरकर है अनिल पिलाता बनकर मधु-मद-मतवाला, | + | भर भरकर है अनिल पिलाता बनकर मधु-मद-मतवाला, |
− | हरे हरे नव पल्लव, तरूगण, नूतन डालें, वल्लरियाँ, | + | हरे हरे नव पल्लव, तरूगण, नूतन डालें, वल्लरियाँ, |
− | छक छक, झुक झुक झूम रही हैं, मधुबन में है मधुशाला।।३५। | + | छक छक, झुक झुक झूम रही हैं, मधुबन में है मधुशाला।।३५। |
− | साकी बन आती है प्रातः जब अरुणा ऊषा बाला, | + | साकी बन आती है प्रातः जब अरुणा ऊषा बाला, |
− | तारक-मणि-मंडित चादर दे मोल धरा लेती हाला, | + | तारक-मणि-मंडित चादर दे मोल धरा लेती हाला, |
− | अगणित कर-किरणों से जिसको पी, खग पागल हो गाते, | + | अगणित कर-किरणों से जिसको पी, खग पागल हो गाते, |
− | प्रति प्रभात में पूर्ण प्रकृति में मुखिरत होती मधुशाला।।३६। | + | प्रति प्रभात में पूर्ण प्रकृति में मुखिरत होती मधुशाला।।३६। |
− | उतर नशा जब उसका जाता, आती है संध्या बाला, | + | उतर नशा जब उसका जाता, आती है संध्या बाला, |
− | बड़ी पुरानी, बड़ी नशीली नित्य ढला जाती हाला, | + | बड़ी पुरानी, बड़ी नशीली नित्य ढला जाती हाला, |
− | जीवन के संताप शोक सब इसको पीकर मिट जाते | + | जीवन के संताप शोक सब इसको पीकर मिट जाते |
− | सुरा-सुप्त होते मद-लोभी जागृत रहती मधुशाला।।३७। | + | सुरा-सुप्त होते मद-लोभी जागृत रहती मधुशाला।।३७। |
− | अंधकार है मधुविक्रेता, सुन्दर साकी शशिबाला | + | अंधकार है मधुविक्रेता, सुन्दर साकी शशिबाला |
− | किरण किरण में जो छलकाती जाम जुम्हाई का हाला, | + | किरण किरण में जो छलकाती जाम जुम्हाई का हाला, |
− | पीकर जिसको चेतनता खो लेने लगते हैं झपकी | + | पीकर जिसको चेतनता खो लेने लगते हैं झपकी |
− | तारकदल से पीनेवाले, रात नहीं है, मधुशाला।।३८। | + | तारकदल से पीनेवाले, रात नहीं है, मधुशाला।।३८। |
− | किसी ओर मैं आँखें फेरूँ, दिखलाई देती हाला | + | किसी ओर मैं आँखें फेरूँ, दिखलाई देती हाला |
− | किसी ओर मैं आँखें फेरूँ, दिखलाई देता प्याला, | + | किसी ओर मैं आँखें फेरूँ, दिखलाई देता प्याला, |
− | किसी ओर मैं देखूं, मुझको दिखलाई देता साकी | + | किसी ओर मैं देखूं, मुझको दिखलाई देता साकी |
− | किसी ओर देखूं, दिखलाई पड़ती मुझको मधुशाला।।३९। | + | किसी ओर देखूं, दिखलाई पड़ती मुझको मधुशाला।।३९। |
− | साकी बन मुरली आई साथ लिए कर में प्याला, | + | साकी बन मुरली आई साथ लिए कर में प्याला, |
− | जिनमें वह छलकाती लाई अधर-सुधा-रस की हाला, | + | जिनमें वह छलकाती लाई अधर-सुधा-रस की हाला, |
− | योगिराज कर संगत उसकी नटवर नागर कहलाए, | + | योगिराज कर संगत उसकी नटवर नागर कहलाए, |
− | देखो कैसों-कैसों को है नाच नचाती मधुशाला।।४०।< | + | देखो कैसों-कैसों को है नाच नचाती मधुशाला।।४०। |
+ | </poem> |
15:20, 25 जुलाई 2020 के समय का अवतरण
बड़े बड़े परिवार मिटें यों, एक न हो रोनेवाला,
हो जाएँ सुनसान महल वे, जहाँ थिरकतीं सुरबाला,
राज्य उलट जाएँ, भूपों की भाग्य सुलक्ष्मी सो जाए,
जमे रहेंगे पीनेवाले, जगा करेगी मधुशाला।।२१।
सब मिट जाएँ, बना रहेगा सुन्दर साकी, यम काला,
सूखें सब रस, बने रहेंगे, किन्तु, हलाहल औ' हाला,
धूमधाम औ' चहल पहल के स्थान सभी सुनसान बनें,
जगा करेगा अविरत मरघट, जगा करेगी मधुशाला।।२२।
बुरा सदा कहलायेगा जग में बाँका, चंचल प्याला,
छैल छबीला, रसिया साकी, अलबेला पीनेवाला,
पटे कहाँ से, मधुशाला औ' जग की जोड़ी ठीक नहीं,
जग जर्जर प्रतिदन, प्रतिक्षण, पर नित्य नवेली मधुशाला।।२३।
बिना पिये जो मधुशाला को बुरा कहे, वह मतवाला,
पी लेने पर तो उसके मुँह पर पड़ जाएगा ताला,
दास द्रोहियों दोनों में है जीत सुरा की, प्याले की,
विश्वविजयिनी बनकर जग में आई मेरी मधुशाला।।२४।
हरा भरा रहता मदिरालय, जग पर पड़ जाए पाला,
वहाँ मुहर्रम का तम छाए, यहाँ होलिका की ज्वाला,
स्वर्ग लोक से सीधी उतरी वसुधा पर, दुख क्या जाने,
पढ़े मर्सिया दुनिया सारी, ईद मनाती मधुशाला।।२५।
एक बरस में, एक बार ही जगती होली की ज्वाला,
एक बार ही लगती बाज़ी, जलती दीपों की माला,
दुनियावालों, किन्तु, किसी दिन आ मदिरालय में देखो,
दिन को होली, रात दिवाली, रोज़ मनाती मधुशाला।।२६।
नहीं जानता कौन, मनुज आया बनकर पीनेवाला,
कौन अपिरिचत उस साकी से, जिसने दूध पिला पाला,
जीवन पाकर मानव पीकर मस्त रहे, इस कारण ही,
जग में आकर सबसे पहले पाई उसने मधुशाला।।२७।
बनी रहें अंगूर लताएँ जिनसे मिलती है हाला,
बनी रहे वह मिटटी जिससे बनता है मधु का प्याला,
बनी रहे वह मदिर पिपासा तृप्त न जो होना जाने,
बनें रहें ये पीने वाले, बनी रहे यह मधुशाला।।२८।
सकुशल समझो मुझको, सकुशल रहती यदि साकीबाला,
मंगल और अमंगल समझे मस्ती में क्या मतवाला,
मित्रों, मेरी क्षेम न पूछो आकर, पर मधुशाला की,
कहा करो 'जय राम' न मिलकर, कहा करो 'जय मधुशाला'।।२९।
सूर्य बने मधु का विक्रेता, सिंधु बने घट, जल, हाला,
बादल बन-बन आए साकी, भूमि बने मधु का प्याला,
झड़ी लगाकर बरसे मदिरा रिमझिम, रिमझिम, रिमझिम कर,
बेलि, विटप, तृण बन मैं पीऊँ, वर्षा ऋतु हो मधुशाला।।३०।
तारक मणियों से सज्जित नभ बन जाए मधु का प्याला,
सीधा करके भर दी जाए उसमें सागरजल हाला,
मज्ञल्तऌा समीरण साकी बनकर अधरों पर छलका जाए,
फैले हों जो सागर तट से विश्व बने यह मधुशाला।।३१।
अधरों पर हो कोई भी रस जिह्वा पर लगती हाला,
भाजन हो कोई हाथों में लगता रक्खा है प्याला,
हर सूरत साकी की सूरत में परिवर्तित हो जाती,
आँखों के आगे हो कुछ भी, आँखों में है मधुशाला।।३२।
पौधे आज बने हैं साकी ले ले फूलों का प्याला,
भरी हुई है जिसके अंदर परिमल-मधु-सुरिभत हाला,
माँग माँगकर भ्रमरों के दल रस की मदिरा पीते हैं,
झूम झपक मद-झंपित होते, उपवन क्या है मधुशाला!।३३।
प्रति रसाल तरू साकी सा है, प्रति मंजरिका है प्याला,
छलक रही है जिसके बाहर मादक सौरभ की हाला,
छक जिसको मतवाली कोयल कूक रही डाली डाली
हर मधुऋतु में अमराई में जग उठती है मधुशाला।।३४।
मंद झकोरों के प्यालों में मधुऋतु सौरभ की हाला
भर भरकर है अनिल पिलाता बनकर मधु-मद-मतवाला,
हरे हरे नव पल्लव, तरूगण, नूतन डालें, वल्लरियाँ,
छक छक, झुक झुक झूम रही हैं, मधुबन में है मधुशाला।।३५।
साकी बन आती है प्रातः जब अरुणा ऊषा बाला,
तारक-मणि-मंडित चादर दे मोल धरा लेती हाला,
अगणित कर-किरणों से जिसको पी, खग पागल हो गाते,
प्रति प्रभात में पूर्ण प्रकृति में मुखिरत होती मधुशाला।।३६।
उतर नशा जब उसका जाता, आती है संध्या बाला,
बड़ी पुरानी, बड़ी नशीली नित्य ढला जाती हाला,
जीवन के संताप शोक सब इसको पीकर मिट जाते
सुरा-सुप्त होते मद-लोभी जागृत रहती मधुशाला।।३७।
अंधकार है मधुविक्रेता, सुन्दर साकी शशिबाला
किरण किरण में जो छलकाती जाम जुम्हाई का हाला,
पीकर जिसको चेतनता खो लेने लगते हैं झपकी
तारकदल से पीनेवाले, रात नहीं है, मधुशाला।।३८।
किसी ओर मैं आँखें फेरूँ, दिखलाई देती हाला
किसी ओर मैं आँखें फेरूँ, दिखलाई देता प्याला,
किसी ओर मैं देखूं, मुझको दिखलाई देता साकी
किसी ओर देखूं, दिखलाई पड़ती मुझको मधुशाला।।३९।
साकी बन मुरली आई साथ लिए कर में प्याला,
जिनमें वह छलकाती लाई अधर-सुधा-रस की हाला,
योगिराज कर संगत उसकी नटवर नागर कहलाए,
देखो कैसों-कैसों को है नाच नचाती मधुशाला।।४०।