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"मधुशाला / भाग ३ / हरिवंशराय बच्चन" के अवतरणों में अंतर

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वादक बन मधु का विक्रेता लाया सुर-सुमधुर-हाला,
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रागिनियाँ बन साकी आई भरकर तारों का प्याला,
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विक्रेता के संकेतों पर दौड़ लयों, आलापों में,
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पान कराती श्रोतागण को, झंकृत वीणा मधुशाला।।४१।
  
वादक बन मधु का विक्रेता लाया सुर-सुमधुर-हाला,<br>
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चित्रकार बन साकी आता लेकर तूली का प्याला,
रागिनियाँ बन साकी आई भरकर तारों का प्याला,<br>
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जिसमें भरकर पान कराता वह बहु रस-रंगी हाला,
विक्रेता के संकेतों पर दौड़ लयों, आलापों में,<br>
+
मन के चित्र जिसे पी-पीकर रंग-बिरंगे हो जाते,
पान कराती श्रोतागण को, झंकृत वीणा मधुशाला।।४१।<br><br>
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चित्रपटी पर नाच रही है एक मनोहर मधुशाला।।४२।
  
चित्रकार बन साकी आता लेकर तूली का प्याला,<br>
+
घन श्यामल अंगूर लता से खिंच खिंच यह आती हाला,
जिसमें भरकर पान कराता वह बहु रस-रंगी हाला,<br>
+
अरूण-कमल-कोमल कलियों की प्याली, फूलों का प्याला,
मन के चित्र जिसे पी-पीकर रंग-बिरंगे हो जाते,<br>
+
लोल हिलोरें साकी बन बन माणिक मधु से भर जातीं,
चित्रपटी पर नाच रही है एक मनोहर मधुशाला।।४२।<br><br>
+
हंस मज्ञल्तऌा होते पी पीकर मानसरोवर मधुशाला।।४३।
  
घन श्यामल अंगूर लता से खिंच खिंच यह आती हाला,<br>
+
हिम श्रेणी अंगूर लता-सी फैली, हिम जल है हाला,
अरूण-कमल-कोमल कलियों की प्याली, फूलों का प्याला,<br>
+
चंचल नदियाँ साकी बनकर, भरकर लहरों का प्याला,
लोल हिलोरें साकी बन बन माणिक मधु से भर जातीं,<br>
+
कोमल कूर-करों में अपने छलकाती निशिदिन चलतीं,
हंस मज्ञल्तऌा होते पी पीकर मानसरोवर मधुशाला।।४३।<br><br>
+
पीकर खेत खड़े लहराते, भारत पावन मधुशाला।।४४।
  
हिम श्रेणी अंगूर लता-सी फैली, हिम जल है हाला,<br>
+
धीर सुतों के हृदय रक्त की आज बना रक्तिम हाला,
चंचल नदियाँ साकी बनकर, भरकर लहरों का प्याला,<br>
+
वीर सुतों के वर शीशों का हाथों में लेकर प्याला,
कोमल कूर-करों में अपने छलकाती निशिदिन चलतीं,<br>
+
अति उदार दानी साकी है आज बनी भारतमाता,
पीकर खेत खड़े लहराते, भारत पावन मधुशाला।।४४।<br><br>
+
स्वतंत्रता है तृषित कालिका बलिवेदी है मधुशाला।।४५।
  
धीर सुतों के हृदय रक्त की आज बना रक्तिम हाला,<br>
+
दुतकारा मस्जिद ने मुझको कहकर है पीनेवाला,
वीर सुतों के वर शीशों का हाथों में लेकर प्याला,<br>
+
ठुकराया ठाकुरद्वारे ने देख हथेली पर प्याला,
अति उदार दानी साकी है आज बनी भारतमाता,<br>
+
कहाँ ठिकाना मिलता जग में भला अभागे काफिर को?
स्वतंत्रता है तृषित कालिका बलिवेदी है मधुशाला।।४५।<br><br>
+
शरणस्थल बनकर न मुझे यदि अपना लेती मधुशाला।।४६।
  
दुतकारा मस्जिद ने मुझको कहकर है पीनेवाला,<br>
+
पथिक बना मैं घूम रहा हूँ, सभी जगह मिलती हाला,
ठुकराया ठाकुरद्वारे ने देख हथेली पर प्याला,<br>
+
सभी जगह मिल जाता साकी, सभी जगह मिलता प्याला,
कहाँ ठिकाना मिलता जग में भला अभागे काफिर को?<br>
+
मुझे ठहरने का, हे मित्रों, कष्ट नहीं कुछ भी होता,
शरणस्थल बनकर मुझे यदि अपना लेती मधुशाला।।४६।<br><br>
+
मिले मंदिर, मिले न मस्जिद, मिल जाती है मधुशाला।।४७।
  
पथिक बना मैं घूम रहा हूँ, सभी जगह मिलती हाला,<br>
+
सजें न मस्जिद और नमाज़ी कहता है अल्लाताला,
सभी जगह मिल जाता साकी, सभी जगह मिलता प्याला,<br>
+
सजधजकर, पर, साकी आता, बन ठनकर, पीनेवाला,
मुझे ठहरने का, हे मित्रों, कष्ट नहीं कुछ भी होता,<br>
+
शेख, कहाँ तुलना हो सकती मस्जिद की मदिरालय से
मिले न मंदिर, मिले न मस्जिद, मिल जाती है मधुशाला।।४७।<br><br>
+
चिर विधवा है मस्जिद तेरी, सदा सुहागिन मधुशाला।।४८।
  
सजें न मस्जिद और नमाज़ी कहता है अल्लाताला,<br>
+
बजी नफ़ीरी और नमाज़ी भूल गया अल्लाताला,
सजधजकर, पर, साकी आता, बन ठनकर, पीनेवाला,<br>
+
गाज गिरी, पर ध्यान सुरा में मग्न रहा पीनेवाला,
शेख, कहाँ तुलना हो सकती मस्जिद की मदिरालय से<br>
+
शेख, बुरा मत मानो इसको, साफ़ कहूँ तो मस्जिद को
चिर विधवा है मस्जिद तेरी, सदा सुहागिन मधुशाला।।४८।<br><br>
+
अभी युगों तक सिखलाएगी ध्यान लगाना मधुशाला!।४९।
  
बजी नफ़ीरी और नमाज़ी भूल गया अल्लाताला,<br>
+
मुसलमान औ' हिन्दू है दो, एक, मगर, उनका प्याला,
गाज गिरी, पर ध्यान सुरा में मग्न रहा पीनेवाला,<br>
+
एक, मगर, उनका मदिरालय, एक, मगर, उनकी हाला,
शेख, बुरा मत मानो इसको, साफ़ कहूँ तो मस्जिद को<br>
+
दोनों रहते एक न जब तक मस्जिद मन्दिर में जाते,
अभी युगों तक सिखलाएगी ध्यान लगाना मधुशाला!।४९।<br><br>
+
बैर बढ़ाते मस्जिद मन्दिर मेल कराती मधुशाला!।५०।
  
मुसलमान औ' हिन्दू है दो, एक, मगर, उनका प्याला,<br>
+
कोई भी हो शेख नमाज़ी या पंडित जपता माला,
एक, मगर, उनका मदिरालय, एक, मगर, उनकी हाला,<br>
+
बैर भाव चाहे जितना हो मदिरा से रखनेवाला,
दोनों रहते एक जब तक मस्जिद मन्दिर में जाते,<br>
+
एक बार बस मधुशाला के आगे से होकर निकले,
बैर बढ़ाते मस्जिद मन्दिर मेल कराती मधुशाला!।५०।<br><br>
+
देखूँ कैसे थाम लेती दामन उसका मधुशाला!।५१।
  
कोई भी हो शेख नमाज़ी या पंडित जपता माला,<br>
+
और रसों में स्वाद तभी तक, दूर जभी तक है हाला,
बैर भाव चाहे जितना हो मदिरा से रखनेवाला,<br>
+
इतरा लें सब पात्र न जब तक, आगे आता है प्याला,
एक बार बस मधुशाला के आगे से होकर निकले,<br>
+
कर लें पूजा शेख, पुजारी तब तक मस्जिद मन्दिर में
देखूँ कैसे थाम लेती दामन उसका मधुशाला!।५१।<br><br>
+
घूँघट का पट खोल जब तक झाँक रही है मधुशाला।।५२।
  
और रसों में स्वाद तभी तक, दूर जभी तक है हाला,<br>
+
आज करे परहेज़ जगत, पर, कल पीनी होगी हाला,
इतरा लें सब पात्र न जब तक, आगे आता है प्याला,<br>
+
आज करे इन्कार जगत पर कल पीना होगा प्याला,
कर लें पूजा शेख, पुजारी तब तक मस्जिद मन्दिर में<br>
+
होने दो पैदा मद का महमूद जगत में कोई, फिर
घूँघट का पट खोल न जब तक झाँक रही है मधुशाला।।५२।<br><br>
+
जहाँ अभी हैं मन्िदर मस्जिद वहाँ बनेगी मधुशाला।।५३।
  
आज करे परहेज़ जगत, पर, कल पीनी होगी हाला,<br>
+
यज्ञ अग्नि सी धधक रही है मधु की भटठी की ज्वाला,
आज करे इन्कार जगत पर कल पीना होगा प्याला,<br>
+
ऋषि सा ध्यान लगा बैठा है हर मदिरा पीने वाला,
होने दो पैदा मद का महमूद जगत में कोई, फिर<br>
+
मुनि कन्याओं सी मधुघट ले फिरतीं साकीबालाएँ,
जहाँ अभी हैं मन्िदर मस्जिद वहाँ बनेगी मधुशाला।।५३।<br><br>
+
किसी तपोवन से क्या कम है मेरी पावन मधुशाला।।५४।
  
यज्ञ अग्नि सी धधक रही है मधु की भटठी की ज्वाला,<br>
+
सोम सुरा पुरखे पीते थे, हम कहते उसको हाला,
ऋषि सा ध्यान लगा बैठा है हर मदिरा पीने वाला,<br>
+
द्रोणकलश जिसको कहते थे, आज वही मधुघट आला,
मुनि कन्याओं सी मधुघट ले फिरतीं साकीबालाएँ,<br>
+
वेदिवहित यह रस्म न छोड़ो वेदों के ठेकेदारों,
किसी तपोवन से क्या कम है मेरी पावन मधुशाला।।५४।<br><br>
+
युग युग से है पुजती आई नई नहीं है मधुशाला।।५५।
  
सोम सुरा पुरखे पीते थे, हम कहते उसको हाला,<br>
+
वही वारूणी जो थी सागर मथकर निकली अब हाला,
द्रोणकलश जिसको कहते थे, आज वही मधुघट आला,<br>
+
रंभा की संतान जगत में कहलाती 'साकीबाला',
वेदिवहित यह रस्म न छोड़ो वेदों के ठेकेदारों,<br>
+
देव अदेव जिसे ले आए, संत महंत मिटा देंगे!
युग युग से है पुजती आई नई नहीं है मधुशाला।।५५।<br><br>
+
किसमें कितना दम खम, इसको खूब समझती मधुशाला।।५६।
  
वही वारूणी जो थी सागर मथकर निकली अब हाला,<br>
+
कभी न सुन पड़ता, 'इसने, हा, छू दी मेरी हाला',
रंभा की संतान जगत में कहलाती 'साकीबाला',<br>
+
कभी न कोई कहता, 'उसने जूठा कर डाला प्याला',
देव अदेव जिसे ले आए, संत महंत मिटा देंगे!<br>
+
सभी जाति के लोग यहाँ पर साथ बैठकर पीते हैं,
किसमें कितना दम खम, इसको खूब समझती मधुशाला।।५६।<br><br>
+
सौ सुधारकों का करती है काम अकेले मधुशाला।।५७।
  
कभी न सुन पड़ता, 'इसने, हा, छू दी मेरी हाला',<br>
+
श्रम, संकट, संताप, सभी तुम भूला करते पी हाला,
कभी न कोई कहता, 'उसने जूठा कर डाला प्याला',<br>
+
सबक बड़ा तुम सीख चुके यदि सीखा रहना मतवाला,
सभी जाति के लोग यहाँ पर साथ बैठकर पीते हैं,<br>
+
व्यर्थ बने जाते हो हिरजन, तुम तो मधुजन ही अच्छे,
सौ सुधारकों का करती है काम अकेले मधुशाला।।५७।<br><br>
+
ठुकराते हिर मंिदरवाले, पलक बिछाती मधुशाला।।५८।
  
श्रम, संकट, संताप, सभी तुम भूला करते पी हाला,<br>
+
एक तरह से सबका स्वागत करती है साकीबाला,
सबक बड़ा तुम सीख चुके यदि सीखा रहना मतवाला,<br>
+
अज्ञ विज्ञ में है क्या अंतर हो जाने पर मतवाला,
व्यर्थ बने जाते हो हिरजन, तुम तो मधुजन ही अच्छे,<br>
+
रंक राव में भेद हुआ है कभी नहीं मदिरालय में,
ठुकराते हिर मंिदरवाले, पलक बिछाती मधुशाला।।५८।<br><br>
+
साम्यवाद की प्रथम प्रचारक है यह मेरी मधुशाला।।५९।
  
एक तरह से सबका स्वागत करती है साकीबाला,<br>
+
बार बार मैंने आगे बढ़ आज नहीं माँगी हाला,
अज्ञ विज्ञ में है क्या अंतर हो जाने पर मतवाला,<br>
+
समझ न लेना इससे मुझको साधारण पीने वाला,
रंक राव में भेद हुआ है कभी नहीं मदिरालय में,<br>
+
हो तो लेने दो ऐ साकी दूर प्रथम संकोचों को,
साम्यवाद की प्रथम प्रचारक है यह मेरी मधुशाला।।५९।<br><br>
+
मेरे ही स्वर से फिर सारी गूँज उठेगी मधुशाला।।६०।
 
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बार बार मैंने आगे बढ़ आज नहीं माँगी हाला,<br>
+
समझ न लेना इससे मुझको साधारण पीने वाला,<br>
+
हो तो लेने दो ऐ साकी दूर प्रथम संकोचों को,<br>
+
मेरे ही स्वर से फिर सारी गूँज उठेगी मधुशाला।।६०।<br><br>
+

15:23, 25 जुलाई 2020 के समय का अवतरण

वादक बन मधु का विक्रेता लाया सुर-सुमधुर-हाला,
रागिनियाँ बन साकी आई भरकर तारों का प्याला,
विक्रेता के संकेतों पर दौड़ लयों, आलापों में,
पान कराती श्रोतागण को, झंकृत वीणा मधुशाला।।४१।

चित्रकार बन साकी आता लेकर तूली का प्याला,
जिसमें भरकर पान कराता वह बहु रस-रंगी हाला,
मन के चित्र जिसे पी-पीकर रंग-बिरंगे हो जाते,
चित्रपटी पर नाच रही है एक मनोहर मधुशाला।।४२।

घन श्यामल अंगूर लता से खिंच खिंच यह आती हाला,
अरूण-कमल-कोमल कलियों की प्याली, फूलों का प्याला,
लोल हिलोरें साकी बन बन माणिक मधु से भर जातीं,
हंस मज्ञल्तऌा होते पी पीकर मानसरोवर मधुशाला।।४३।

हिम श्रेणी अंगूर लता-सी फैली, हिम जल है हाला,
चंचल नदियाँ साकी बनकर, भरकर लहरों का प्याला,
कोमल कूर-करों में अपने छलकाती निशिदिन चलतीं,
पीकर खेत खड़े लहराते, भारत पावन मधुशाला।।४४।

धीर सुतों के हृदय रक्त की आज बना रक्तिम हाला,
वीर सुतों के वर शीशों का हाथों में लेकर प्याला,
अति उदार दानी साकी है आज बनी भारतमाता,
स्वतंत्रता है तृषित कालिका बलिवेदी है मधुशाला।।४५।

दुतकारा मस्जिद ने मुझको कहकर है पीनेवाला,
ठुकराया ठाकुरद्वारे ने देख हथेली पर प्याला,
कहाँ ठिकाना मिलता जग में भला अभागे काफिर को?
शरणस्थल बनकर न मुझे यदि अपना लेती मधुशाला।।४६।

पथिक बना मैं घूम रहा हूँ, सभी जगह मिलती हाला,
सभी जगह मिल जाता साकी, सभी जगह मिलता प्याला,
मुझे ठहरने का, हे मित्रों, कष्ट नहीं कुछ भी होता,
मिले न मंदिर, मिले न मस्जिद, मिल जाती है मधुशाला।।४७।

सजें न मस्जिद और नमाज़ी कहता है अल्लाताला,
सजधजकर, पर, साकी आता, बन ठनकर, पीनेवाला,
शेख, कहाँ तुलना हो सकती मस्जिद की मदिरालय से
चिर विधवा है मस्जिद तेरी, सदा सुहागिन मधुशाला।।४८।

बजी नफ़ीरी और नमाज़ी भूल गया अल्लाताला,
गाज गिरी, पर ध्यान सुरा में मग्न रहा पीनेवाला,
शेख, बुरा मत मानो इसको, साफ़ कहूँ तो मस्जिद को
अभी युगों तक सिखलाएगी ध्यान लगाना मधुशाला!।४९।

मुसलमान औ' हिन्दू है दो, एक, मगर, उनका प्याला,
एक, मगर, उनका मदिरालय, एक, मगर, उनकी हाला,
दोनों रहते एक न जब तक मस्जिद मन्दिर में जाते,
बैर बढ़ाते मस्जिद मन्दिर मेल कराती मधुशाला!।५०।

कोई भी हो शेख नमाज़ी या पंडित जपता माला,
बैर भाव चाहे जितना हो मदिरा से रखनेवाला,
एक बार बस मधुशाला के आगे से होकर निकले,
देखूँ कैसे थाम न लेती दामन उसका मधुशाला!।५१।

और रसों में स्वाद तभी तक, दूर जभी तक है हाला,
इतरा लें सब पात्र न जब तक, आगे आता है प्याला,
कर लें पूजा शेख, पुजारी तब तक मस्जिद मन्दिर में
घूँघट का पट खोल न जब तक झाँक रही है मधुशाला।।५२।

आज करे परहेज़ जगत, पर, कल पीनी होगी हाला,
आज करे इन्कार जगत पर कल पीना होगा प्याला,
होने दो पैदा मद का महमूद जगत में कोई, फिर
जहाँ अभी हैं मन्िदर मस्जिद वहाँ बनेगी मधुशाला।।५३।

यज्ञ अग्नि सी धधक रही है मधु की भटठी की ज्वाला,
ऋषि सा ध्यान लगा बैठा है हर मदिरा पीने वाला,
मुनि कन्याओं सी मधुघट ले फिरतीं साकीबालाएँ,
किसी तपोवन से क्या कम है मेरी पावन मधुशाला।।५४।

सोम सुरा पुरखे पीते थे, हम कहते उसको हाला,
द्रोणकलश जिसको कहते थे, आज वही मधुघट आला,
वेदिवहित यह रस्म न छोड़ो वेदों के ठेकेदारों,
युग युग से है पुजती आई नई नहीं है मधुशाला।।५५।

वही वारूणी जो थी सागर मथकर निकली अब हाला,
रंभा की संतान जगत में कहलाती 'साकीबाला',
देव अदेव जिसे ले आए, संत महंत मिटा देंगे!
किसमें कितना दम खम, इसको खूब समझती मधुशाला।।५६।

कभी न सुन पड़ता, 'इसने, हा, छू दी मेरी हाला',
कभी न कोई कहता, 'उसने जूठा कर डाला प्याला',
सभी जाति के लोग यहाँ पर साथ बैठकर पीते हैं,
सौ सुधारकों का करती है काम अकेले मधुशाला।।५७।

श्रम, संकट, संताप, सभी तुम भूला करते पी हाला,
सबक बड़ा तुम सीख चुके यदि सीखा रहना मतवाला,
व्यर्थ बने जाते हो हिरजन, तुम तो मधुजन ही अच्छे,
ठुकराते हिर मंिदरवाले, पलक बिछाती मधुशाला।।५८।

एक तरह से सबका स्वागत करती है साकीबाला,
अज्ञ विज्ञ में है क्या अंतर हो जाने पर मतवाला,
रंक राव में भेद हुआ है कभी नहीं मदिरालय में,
साम्यवाद की प्रथम प्रचारक है यह मेरी मधुशाला।।५९।

बार बार मैंने आगे बढ़ आज नहीं माँगी हाला,
समझ न लेना इससे मुझको साधारण पीने वाला,
हो तो लेने दो ऐ साकी दूर प्रथम संकोचों को,
मेरे ही स्वर से फिर सारी गूँज उठेगी मधुशाला।।६०।