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यह तो बहाना है / किरण मल्होत्रा
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04:45, 16 अप्रैल 2011
बहुत अकेले
या
भीड
भीड़
में
हमें चाह होती है
साथी की
अंधेरे
अँधेरे
में
या ज़िन्दगी की
ठोकर पर
याद करने का
न दुःख
बांटने
बाँटने
से
कम होता है
न सुख
यह तो
ढ़ंग
ढंग
है
मन को मनाने का
ज़िन्दगी
कभी धीमे
कभी
तेज
तेज़
स्वर में
गुनगुनाती रहती है
</Poem>
अनिल जनविजय
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