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यह तो बहाना है / किरण मल्होत्रा
Kavita Kosh से
बहुत दुःखद
या सुखद क्षणों में
हमें याद आती है
दोस्त की
बहुत अकेले
या भीड़ में
हमें चाह होती है
साथी की
अँधेरे में
या ज़िन्दगी की
ठोकर पर
हमें याद आती है
माँ की
जब
ऐसे क्षणों में
तुम्हें
इनकी याद न आए
तो समझना
न तुम
सच्चे दोस्त हो
न बेटे
ज़िन्दगी तो
यूँ ही
बहती रहती है
यह तो
बहाना है
याद करने का
न दुःख
बाँटने से
कम होता है
न सुख
बढ़ता है
यह तो
ढंग है
मन को मनाने का
ज़िन्दगी
एक वीणा की तरह
झुनझुनाती रहती है
कभी धीमे
कभी तेज़
स्वर में
गुनगुनाती रहती है