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<div class='box' style="background-color:#DD5511;width:100%; align:center"><div class='boxtop'><div></div></div>
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<div class='boxheader' style='background-color:#DD5511; color:#ffffff'>'''&nbsp;सप्ताह की कविता'''</div>
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&nbsp;&nbsp;'''शीर्षक: '''सूत्रधार <br>
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&nbsp;&nbsp;'''रचनाकार:''' [[विमल कुमार]]
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मैं इन दिनों खेले जा रहे
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एक अजीबोग़रीब नाटक का सूत्रधार हूँ
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अभी नेपथ्य से ही बोल रहा हूँ
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कि लोकतन्त्र में किसी बात पर बहस हो सकती है
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इस बात पर भी बहस हो सकती है
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कि हत्या करना कितना ज़रूरी है एक आदमी की
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मानवता की रक्षा के लिए
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कि बलात्कार से महिलाएँ कितनी जागरूक होती हैं
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अपने अधिकारों के प्रति
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इस नाटक के हर सीन के बाद
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एक संवाददाता सम्मेलन होगा, जो क्षेपक है,
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खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार</div>
उसमें बताया जाएगा
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कि इन बहसों के नतीजे क्या निकले हैं
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कि आख़िर में कौन सा संकल्प पारित हुआ है
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अगले दिन फिर अख़बारों में उनकी ख़बर होगी
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मुखपृष्ठ पर
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टी०वी० पर फिर चेहरा नज़र आएगा उनका
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चारों तरफ़ कैमरों से घिरी होगी उनकी काया
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फिर एक विधेयक पेश होगा संशोधन के साथ
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एक प्राहिकरण बनेगा
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और कुछ नहीं हुआ तो कम से कम अध्यक्ष का चयन ज़रूर होगा
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मैं इस लम्बे और उबाऊ नाटक का सूत्रधार हूँ
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लचर कथानक और ढीले सम्वादों से बोर हो चुका हूँ
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रचनाकार: [[त्रिलोचन]]
लेकिन क्या करूँ अब मंच पर आकर बोल रहा हूँ
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</div>
कि लोकतन्त्र में कोई भी जनप्रतिनिधी कह सकता है
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कि भूखी जनता को पहले अपने राष्ट्रप्रेम का परिचय देना चाहिए
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कि नंगी जनता को समझना चाहिए
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कि बम ज़्यादा ज़रूरी है अंग ढँकने से
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कि बच्चों को भी जान लेना चाहिए
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युध से ही उनका भविष्य संवर सकता है
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कि औरतों को भी मान लेना चाहिए
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कि सौन्दर्य में ही छिपी हुई है उनकी आज़ादी
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मध्यांतर में इस बात पर विशेष चर्चा होगी
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कि आज़ाई के पचास साल बाद
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लुटेरे ही एश का निर्माण कर सकेंगे
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क्योंकि उनमें अद्भुत्त नेतृत्त्व-क्षमता है
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कि मक्कार ही ईमानदारी की भाशःआ सिखाएंगे
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क्योंकि विकास के लिए धूर्तता बहुत ज़रूरी है
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कि अहंकारी ही ज्ञान का प्रचार करेंगे
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क्योंकि विनम्रता में तो छिपी होती है मूर्खता
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मैं इस नाटक का सूत्रधार हूँ
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<div style="background: #fff; border: 1px solid #ccc; box-shadow: 0 0 10px #ccc inset; font-size: 16px; margin: 0 auto; padding: 0 20px; white-space: pre;">
पर निर्देर्शक का दबाव भी मेरे ऊपर बहुत है
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खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार
लेकिन मुझे तो सच कहना है लेखक के अनुसार
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अपरिचित पास आओ
इसलिए सच कह रहा हूँ
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कि नाटक के ख़त्म होने पर
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हर कलाकार का उससे परिचय कराया जाऐगा
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यह बताया जाऐगा
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कि जो व्यक्ति कभी मंच पर आया ही नहीं
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वही मुख्य नायक था इस नाटक का
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कि जो शोर सुनाई दे रहा था आपको अभी तक
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वह दरअसल नाटक का संगीत था
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कि सभागार में जो अंधेरा छाया था
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वह लाइटिंग के ही कमाल का नतीजा था
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दर्शको! इस नाटक के अभी और शो होंगे
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आँखों में सशंक जिज्ञासा
यह नाटक अगली सदी में भी
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मिक्ति कहाँ, है अभी कुहासा
इसी तरह हर शहर में खेला जाऐगा
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जहाँ खड़े हैं, पाँव जड़े हैं
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स्तम्भ शेष भय की परिभाषा
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हिलो-मिलो फिर एक डाल के
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खिलो फूल-से, मत अलगाओ
  
नाट्य-समीक्षको!
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सबमें अपनेपन की माया
अगर भारतीय रंगमंच को बचाना है
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अपने पन में जीवन आया
तो कुछ न कुछ आप लोगों को भी करना होगा
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इस समय नाट्य लेखन,
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</div></div>
अभिनय
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प्रस्तुति
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सब ख़तरे में है
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19:38, 7 मार्च 2015 के समय का अवतरण

खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार

रचनाकार: त्रिलोचन

खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार अपरिचित पास आओ

आँखों में सशंक जिज्ञासा मिक्ति कहाँ, है अभी कुहासा जहाँ खड़े हैं, पाँव जड़े हैं स्तम्भ शेष भय की परिभाषा हिलो-मिलो फिर एक डाल के खिलो फूल-से, मत अलगाओ

सबमें अपनेपन की माया अपने पन में जीवन आया