"गँग / परिचय" के अवतरणों में अंतर
Pratishtha (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKRachnakaarParichay |रचनाकार=गँग }} गँग रीतिकालीन काव्य परंपरा के प्रथम महत्व...) |
Sharda suman (चर्चा | योगदान) |
||
(इसी सदस्य द्वारा किये गये बीच के 2 अवतरण नहीं दर्शाए गए) | |||
पंक्ति 2: | पंक्ति 2: | ||
|रचनाकार=गँग | |रचनाकार=गँग | ||
}} | }} | ||
− | गँग रीतिकालीन काव्य परंपरा के प्रथम महत्वपूर्ण कवि थे। ये इटावा जिले के एकनार गाँव के निवासी थे। इनका मूल नाम गंगाधर था। ये जाति के ब्राह्मण थे तथा अकबर के दरबारी कवि थे। इसके अतिरिक्त ये रहीम, बीरबल, मानसिंह तथा टोडरमल के भी प्रिय थे। ये बडे स्वाभिमानी थे। कहते हैं कि अपनी स्पष्टवादिता के कारण ये जहाँगीर के कोपभाजन हुए और उसने इन्हें हाथी से कुचलवा | + | गँग रीतिकालीन काव्य परंपरा के प्रथम महत्वपूर्ण कवि थे। ये इटावा जिले के एकनार गाँव के निवासी थे। इनका मूल नाम गंगाधर था। ये जाति के ब्राह्मण थे तथा अकबर के दरबारी कवि थे। इसके अतिरिक्त ये रहीम, बीरबल, मानसिंह तथा टोडरमल के भी प्रिय थे। ये बडे स्वाभिमानी थे। कहते हैं कि अपनी स्पष्टवादिता के कारण ये जहाँगीर के कोपभाजन हुए और उसने इन्हें हाथी से कुचलवा दिया और उसी समय मरने से पहले इन्होंने यह दोहा कहा था :- |
+ | |||
+ | "कबहूँ न भड़ुआ रन चढ़े,कबहूँ न बाजी बंब. | ||
+ | |||
+ | सकल सभाहि प्रनाम करि,बिदा होत कवि गंग." | ||
+ | |||
गुलाब कवि ने इस घटना को लक्ष्य करके कहा था- 'गंग ऐसे गुनी को गयंद से चिराइये। कवि के पुत्र ने भी 'गंग को लेन गनेस पठायो कहकर इसी ओर इंगित किया है। गंग की कविता अलंकार और शब्द वैचित्र्य से भरपूर है। साथ ही उसमें सरसता और मार्मिकता भी है। मुख्य ग्रंथ हैं -'गंग पदावली, 'गंग पचीसी तथा 'गंग रत्नावली। भिखारीदासजी ने इनके विषय में कहा है- 'तुलसी गंग दुवौ भए, सुकविन में सरदार। | गुलाब कवि ने इस घटना को लक्ष्य करके कहा था- 'गंग ऐसे गुनी को गयंद से चिराइये। कवि के पुत्र ने भी 'गंग को लेन गनेस पठायो कहकर इसी ओर इंगित किया है। गंग की कविता अलंकार और शब्द वैचित्र्य से भरपूर है। साथ ही उसमें सरसता और मार्मिकता भी है। मुख्य ग्रंथ हैं -'गंग पदावली, 'गंग पचीसी तथा 'गंग रत्नावली। भिखारीदासजी ने इनके विषय में कहा है- 'तुलसी गंग दुवौ भए, सुकविन में सरदार। |
20:15, 22 सितम्बर 2012 के समय का अवतरण
गँग रीतिकालीन काव्य परंपरा के प्रथम महत्वपूर्ण कवि थे। ये इटावा जिले के एकनार गाँव के निवासी थे। इनका मूल नाम गंगाधर था। ये जाति के ब्राह्मण थे तथा अकबर के दरबारी कवि थे। इसके अतिरिक्त ये रहीम, बीरबल, मानसिंह तथा टोडरमल के भी प्रिय थे। ये बडे स्वाभिमानी थे। कहते हैं कि अपनी स्पष्टवादिता के कारण ये जहाँगीर के कोपभाजन हुए और उसने इन्हें हाथी से कुचलवा दिया और उसी समय मरने से पहले इन्होंने यह दोहा कहा था :-
"कबहूँ न भड़ुआ रन चढ़े,कबहूँ न बाजी बंब.
सकल सभाहि प्रनाम करि,बिदा होत कवि गंग."
गुलाब कवि ने इस घटना को लक्ष्य करके कहा था- 'गंग ऐसे गुनी को गयंद से चिराइये। कवि के पुत्र ने भी 'गंग को लेन गनेस पठायो कहकर इसी ओर इंगित किया है। गंग की कविता अलंकार और शब्द वैचित्र्य से भरपूर है। साथ ही उसमें सरसता और मार्मिकता भी है। मुख्य ग्रंथ हैं -'गंग पदावली, 'गंग पचीसी तथा 'गंग रत्नावली। भिखारीदासजी ने इनके विषय में कहा है- 'तुलसी गंग दुवौ भए, सुकविन में सरदार।