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"दो बूँदें / जयशंकर प्रसाद" के अवतरणों में अंतर

 
 
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शरद का सुंदर नीलाकाश
 
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निशा निखरी, था निर्मल हास
 
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बह रही छाया पथ में स्वच्छ
 
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सुधा सरिता लेती उच्छ्वास
 
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पुलक कर लगी देखने धरा
 
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प्रकृति भी सकी न आँखें मूँद
प्रकृति भी सकी न आँखें मूंद
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सु शीतलकारी शशि आया
 
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सुधा की मनो बड़ी सी बूँद!</poem>
सुधा की मनो बड़ी सी बूँद !
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15:38, 19 दिसम्बर 2018 के समय का अवतरण

शरद का सुंदर नीलाकाश
निशा निखरी, था निर्मल हास
बह रही छाया पथ में स्वच्छ
सुधा सरिता लेती उच्छ्वास
पुलक कर लगी देखने धरा
प्रकृति भी सकी न आँखें मूँद
सु शीतलकारी शशि आया
सुधा की मनो बड़ी सी बूँद!