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− | <div class='box' style="background-color:#DD5511;width:100%; align:center"><div class='boxtop'><div></div></div> | + | <div style="background:#eee; padding:10px"> |
− | <div class='boxheader' style='background-color:#DD5511; color:#ffffff'></div> | + | <div style="background: transparent; width:95%; height:450px; overflow:auto; border:0px inset #aaa; padding:10px"> |
− | <div id="kkHomePageSearchBoxDiv" class='boxcontent' style='background-color:#FFF3DF;border:1px solid #DD5511;'>
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− | <!----BOX CONTENT STARTS------>
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− | <table width=100% style="background:transparent">
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− | <tr><td rowspan=2>[[चित्र:Lotus-48x48.png]]</td>
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− | <td rowspan=2> <font size=4>सप्ताह की कविता</font></td>
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− | <td> '''शीर्षक: '''अकाल-दर्शन<br>
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− | '''रचनाकार:''' [[धूमिल]]</td>
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− | </tr>
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− | </table>
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− | <pre style="overflow:auto;height:21em;background:transparent; border:none"> | + | <div style="font-size:120%; color:#a00000; text-align: center;"> |
− | भूख कौन उपजाता है :
| + | खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार</div> |
− | वह इरादा जो तरह देता है
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− | या वह घृणा जो आँखों पर पट्टी बाँधकर
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− | हमें घास की सट्टी मे छोड़ आती है?
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− | उस चालाक आदमी ने मेरी बात का उत्तर
| + | <div style="text-align: center;"> |
− | नहीं दिया।
| + | रचनाकार: [[त्रिलोचन]] |
− | उसने गलियों और सड़कों और घरों में
| + | </div> |
− | बाढ़ की तरह फैले हुए बच्चों की ओर इशारा किया
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− | और हँसने लगा।
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− | मैंने उसका हाथ पकड़ते हुए कहा –
| + | <div style="background: #fff; border: 1px solid #ccc; box-shadow: 0 0 10px #ccc inset; font-size: 16px; margin: 0 auto; padding: 0 20px; white-space: pre;"> |
− | 'बच्चे तो बेकारी के दिनों की बरकत हैं'
| + | खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार |
− | इससे वे भी सहमत हैं
| + | अपरिचित पास आओ |
− | जो हमारी हालत पर तरस खाकर, खाने के लिए
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− | रसद देते हैं।
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− | उनका कहना है कि बच्चे
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− | हमें बसन्त बुनने में मदद देते हैं।
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− | लेकिन यही वे भूलते हैं
| + | आँखों में सशंक जिज्ञासा |
− | दरअस्ल, पेड़ों पर बच्चे नहीं
| + | मिक्ति कहाँ, है अभी कुहासा |
− | हमारे अपराध फूलते हैं
| + | जहाँ खड़े हैं, पाँव जड़े हैं |
− | मगर उस चालाक आदमी ने मेरी किसी बात का उत्तर
| + | स्तम्भ शेष भय की परिभाषा |
− | नहीं दिया और हँसता रहा – हँसता रहा – हँसता रहा
| + | हिलो-मिलो फिर एक डाल के |
− | फिर जल्दी से हाथ छुड़ाकर | + | खिलो फूल-से, मत अलगाओ |
− | 'जनता के हित में' स्थानांतरित
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− | हो गया।
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− | मैंने खुद को समझाया – यार!
| + | सबमें अपनेपन की माया |
− | उस जगह खाली हाथ जाने से इस तरह
| + | अपने पन में जीवन आया |
− | क्यों झिझकते हो?
| + | </div> |
− | क्या तुम्हें किसी का सामना करना है?
| + | </div></div> |
− | तुम वहाँ कुआँ झाँकते आदमी की
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− | सिर्फ़ पीठ देख सकते हो।
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− | और सहसा मैंने पाया कि मैं खुद अपने सवालों के
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− | सामने खड़ा हूँ और
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− | उस मुहावरे को समझ गया हूँ
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− | जो आज़ादी और गांधी के नाम पर चल रहा है
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− | जिससे न भूख मिट रही है, न मौसम
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− | बदल रहा है।
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− | लोग बिलबिला रहे हैं (पेड़ों को नंगा करते हुए)
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− | पत्ते और छाल
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− | खा रहे हैं
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− | मर रहे हैं, दान
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− | कर रहे हैं।
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− | जलसों-जुलूसों में भीड़ की पूरी ईमानदारी से
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− | हिस्सा ले रहे हैं और
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− | अकाल को सोहर की तरह गा रहे हैं।
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− | झुलसे हुए चेहरों पर कोई चेतावनी नहीं है।
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− | मैंने जब उनसे कहा कि देश शासन और राशन...
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− | उन्होंने मुझे टोक दिया है।
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− | अक्सर ये मुझे अपराध के असली मुकाम पर
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− | अँगुली रखने से मना करते हैं।
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− | जिनका आधे से ज़्यादा शरीर
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− | भेड़ियों ने खा लिया है
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− | वे इस जंगल की सराहना करते हैं –
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− | 'भारतवर्ष नदियों का देश है।'
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− | बेशक यह ख्याल ही उनका हत्यारा है।
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− | यह दूसरी बात है कि इस बार
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− | उन्हें पानी ने मारा है।
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− | मगर वे हैं कि असलियत नहीं समझते।
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− | अनाज में छिपे उस आदमी की नीयत
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− | नहीं समझते
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− | जो पूरे समुदाय से
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− | अपनी गिज़ा वसूल करता है –
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− | कभी 'गाय' से
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− | कभी 'हाथ' से
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− | 'यह सब कैसे होता है' मैं उसे समझाता हूँ
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− | मैं उन्हें समझाता हूँ –
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− | यह कौनसा प्रजातान्त्रिक नुस्खा है
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− | कि जिस उम्र में
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− | मेरी माँ का चेहरा
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− | झुर्रियों की झोली बन गया है
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− | उसी उम्र की मेरी पड़ौस की महिला
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− | के चेहरे पर
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− | मेरी प्रेमिका के चेहरे-सा
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− | लोच है।
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− | ले चुपचाप सुनते हैं।
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− | उनकी आँखों में विरक्ति है :
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− | पछतावा है;
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− | संकोच है
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− | या क्या है कुछ पता नहीं चलता।
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− | वे इस कदर पस्त हैं :
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− | कि तटस्थ हैं।
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− | और मैं सोचने लगता हूँ कि इस देश में
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− | एकता युद्ध की और दया
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− | अकाल की पूंजी है।
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− | क्रान्ति –
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− | यहाँ के असंग लोगों के लिए
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− | किसी अबोध बच्चे के –
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− | हाथों की जूजी है।
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