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− | <div class='box' style="background-color:#DD5511;width:100%; align:center"><div class='boxtop'><div></div></div> | + | <div style="background:#eee; padding:10px"> |
− | <div class='boxheader' style='background-color:#DD5511; color:#ffffff'></div> | + | <div style="background: transparent; width:95%; height:450px; overflow:auto; border:0px inset #aaa; padding:10px"> |
− | <div id="kkHomePageSearchBoxDiv" class='boxcontent' style='background-color:#FFF3DF;border:1px solid #DD5511;'>
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− | <!----BOX CONTENT STARTS------>
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− | <table width=100% style="background:transparent">
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− | <tr><td rowspan=2>[[चित्र:Lotus-48x48.png]]</td>
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− | <td rowspan=2> <font size=4>सप्ताह की कविता</font></td>
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− | <td> '''शीर्षक: '''मुसलमान<br>
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− | '''रचनाकार:''' [[देवी प्रसाद मिश्र]]</td>
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− | </tr>
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− | </table>
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− | <pre style="overflow:auto;height:21em;background:transparent; border:none"> | + | <div style="font-size:120%; color:#a00000; text-align: center;"> |
− | कहते हैं वे विपत्ति की तरह आए
| + | खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार</div> |
− | कहते हैं वे प्रदूषण की तरह फैले
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− | वे व्याधि थे
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− | ब्राह्मण कहते थे वे मलेच्छ थे
| + | <div style="text-align: center;"> |
| + | रचनाकार: [[त्रिलोचन]] |
| + | </div> |
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− | वे मुसलमान थे
| + | <div style="background: #fff; border: 1px solid #ccc; box-shadow: 0 0 10px #ccc inset; font-size: 16px; margin: 0 auto; padding: 0 20px; white-space: pre;"> |
| + | खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार |
| + | अपरिचित पास आओ |
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− | उन्होंने अपने घोड़े सिन्धु में उतारे
| + | आँखों में सशंक जिज्ञासा |
− | और पुकारते रहे हिन्दू! हिन्दू!! हिन्दू!!!
| + | मिक्ति कहाँ, है अभी कुहासा |
| + | जहाँ खड़े हैं, पाँव जड़े हैं |
| + | स्तम्भ शेष भय की परिभाषा |
| + | हिलो-मिलो फिर एक डाल के |
| + | खिलो फूल-से, मत अलगाओ |
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− | बड़ी जाति को उन्होंने बड़ा नाम दिया
| + | सबमें अपनेपन की माया |
− | नदी का नाम दिया
| + | अपने पन में जीवन आया |
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− | वे हर गहरी और अविरल नदी को
| + | </div></div> |
− | पार करना चाहते थे
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− | वे मुसलमान थे लेकिन वे भी
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− | यदि कबीर की समझदारी का सहारा लिया जाए तो
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− | हिन्दुओं की तरह पैदा होते थे
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− | उनके पास बड़ी-बड़ी कहानियाँ थीं
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− | चलने की
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− | ठहरने की
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− | पिटने की
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− | और मृत्यु की
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− | प्रतिपक्षी के ख़ून में घुटनों तक
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− | और अपने ख़ून में कन्धों तक
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− | वे डूबे होते थे
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− | उनकी मुट्ठियों में घोड़ों की लगामें
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− | और म्यानों में सभ्यता के
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− | नक्शे होते थे
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− | न! मृत्यु के लिए नहीं
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− | वे मृत्यु के लिए युद्ध नहीं लड़ते थे
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− | वे मुसलमान थे
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− | वे फ़ारस से आए
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− | तूरान से आए
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− | समरकन्द, फ़रग़ना, सीस्तान से आए
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− | तुर्किस्तान से आए
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− | वे बहुत दूर से आए
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− | फिर भी वे पृथ्वी के ही कुछ हिस्सों से आए
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− | वे आए क्योंकि वे आ सकते थे
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− | वे मुसलमान थे
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− | वे मुसलमान थे कि या ख़ुदा उनकी शक्लें
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− | आदमियों से मिलती थीं हूबहू
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− | हूबहू
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− | वे महत्त्वपूर्ण अप्रवासी थे
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− | क्योंकि उनके पास दुख की स्मृतियाँ थीं
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− | वे घोड़ों के साथ सोते थे
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− | और चट्टानों पर वीर्य बिख़ेर देते थे
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− | निर्माण के लिए वे बेचैन थे
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− | वे मुसलमान थे
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− | यदि सच को सच की तरह कहा जा सकता है
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− | तो सच को सच की तरह सुना जाना चाहिए
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− | कि वे प्रायः इस तरह होते थे
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− | कि प्रायः पता ही नहीं लगता था
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− | कि वे मुसलमान थे या नहीं थे
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− | वे मुसलमान थे
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− | वे न होते तो लखनऊ न होता
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− | आधा इलाहाबाद न होता
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− | मेहराबें न होतीं, गुम्बद न होता
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− | आदाब न होता
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− | मीर मक़दूम मोमिन न होते
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− | शबाना न होती
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− | वे न होते तो उपमहाद्वीप के संगीत को सुननेवाला ख़ुसरो न होता
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− | वे न होते तो पूरे देश के गुस्से से बेचैन होनेवाला कबीर न होता
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− | वे न होते तो भारतीय उपमहाद्वीप के दुख को कहनेवाला ग़ालिब न होता
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− | मुसलमान न होते तो अट्ठारह सौ सत्तावन न होता
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− | वे थे तो चचा हसन थे
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− | वे थे तो पतंगों से रंगीन होते आसमान थे
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− | वे मुसलमान थे
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− | वे मुसलमान थे और हिन्दुस्तान में थे
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− | और उनके रिश्तेदार पाकिस्तान में थे
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− | वे सोचते थे कि काश वे एक बार पाकिस्तान जा सकते
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− | वे सोचते थे और सोचकर डरते थे
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− | इमरान ख़ान को देखकर वे ख़ुश होते थे
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− | वे ख़ुश होते थे और ख़ुश होकर डरते थे
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− | वे जितना पी०ए०सी० के सिपाही से डरते थे
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− | उतना ही राम से
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− | वे मुरादाबाद से डरते थे
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− | वे मेरठ से डरते थे
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− | वे भागलपुर से डरते थे
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− | वे अकड़ते थे लेकिन डरते थे
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− | वे पवित्र रंगों से डरते थे
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− | वे अपने मुसलमान होने से डरते थे
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− | वे फ़िलीस्तीनी नहीं थे लेकिन अपने घर को लेकर घर में
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− | देश को लेकर देश में
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− | ख़ुद को लेकर आश्वस्त नहीं थे
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− | वे उखड़ा-उखड़ा राग-द्वेष थे
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− | वे मुसलमान थे
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− | वे कपड़े बुनते थे
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− | वे कपड़े सिलते थे
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− | वे ताले बनाते थे
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− | वे बक्से बनाते थे
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− | उनके श्रम की आवाज़ें
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− | पूरे शहर में गूँजती रहती थीं
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− | वे शहर के बाहर रहते थे
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− | वे मुसलमान थे लेकिन दमिश्क उनका शहर नहीं था
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− | वे मुसलमान थे अरब का पैट्रोल उनका नहीं था
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− | वे दज़ला का नहीं यमुना का पानी पीते थे
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− | वे मुसलमान थे
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− | वे मुसलमान थे इसलिए बचके निकलते थे
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− | वे मुसलमान थे इसलिए कुछ कहते थे तो हिचकते थे
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− | देश के ज़्यादातर अख़बार यह कहते थे
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− | कि मुसलमान के कारण ही कर्फ़्यू लगते हैं
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− | कर्फ़्यू लगते थे और एक के बाद दूसरे हादसे की
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− | ख़बरें आती थीं
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− | उनकी औरतें
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− | बिना दहाड़ मारे पछाड़ें खाती थीं
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− | बच्चे दीवारों से चिपके रहते थे
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− | वे मुसलमान थे
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− | वे मुसलमान थे इसलिए
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− | जंग लगे तालों की तरह वे खुलते नहीं थे
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− | वे अगर पाँच बार नमाज़ पढ़ते थे
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− | तो उससे कई गुना ज़्यादा बार
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− | सिर पटकते थे
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− | वे मुसलमान थे
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− | वे पूछना चाहते थे कि इस लालकिले का हम क्या करें
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− | वे पूछना चाहते थे कि इस हुमायूं के मक़बरे का हम क्या करें
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− | हम क्या करें इस मस्जिद का जिसका नाम
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− | कुव्वत-उल-इस्लाम है
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− | इस्लाम की ताक़त है
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− | अदरक की तरह वे बहुत कड़वे थे
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− | वे मुसलमान थे
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− | वे सोचते थे कि कहीं और चले जाएँ
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− | लेकिन नहीं जा सकते थे
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− | वे सोचते थे यहीं रह जाएँ
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− | तो नहीं रह सकते थे
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− | वे आधा जिबह बकरे की तरह तकलीफ़ के झटके महसूस करते थे
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− | वे मुसलमान थे इसलिए
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− | तूफ़ान में फँसे जहाज़ के मुसाफ़िरों की तरह
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− | एक दूसरे को भींचे रहते थे
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− | कुछ लोगों ने यह बहस चलाई थी कि
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− | उन्हें फेंका जाए तो
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− | किस समुद्र में फेंका जाए
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− | बहस यह थी
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− | कि उन्हें धकेला जाए
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− | तो किस पहाड़ से धकेला जाए
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− | वे मुसलमान थे लेकिन वे चींटियाँ नहीं थे
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− | वे मुसलमान थे वे चूजे नहीं थे
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− | सावधान!
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− | सिन्धु के दक्षिण में
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− | सैंकड़ों सालों की नागरिकता के बाद
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− | मिट्टी के ढेले नहीं थे वे
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− | वे चट्टान और ऊन की तरह सच थे
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− | वे सिन्धु और हिन्दुकुश की तरह सच थे
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− | सच को जिस तरह भी समझा जा सकता हो
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− | उस तरह वे सच थे
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− | वे सभ्यता का अनिवार्य नियम थे
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− | वे मुसलमान थे अफ़वाह नहीं थे
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− | वे मुसलमान थे
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− | वे मुसलमान थे
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− | वे मुसलमान थे
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