प्रकाश बादल (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अवतार एनगिल |संग्रह=सूर्य से सूर्य तक / अवतार एन...) |
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+ | खुद को देखता है सिपाही | ||
+ | बोलती है धुंधली परछाईं | ||
+ | घिर आई है | ||
+ | आंखों के नीचे | ||
+ | अनुभव की झुर्री | ||
+ | ऊँघता है पलकों के पलने में | ||
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+ | उसकी कठोर उंगलियों ने | ||
+ | मनी-ऑर्डर की वापस आई रसीद को भी | ||
+ | तो लपेटा है | ||
+ | सुरंग पार पहुंचते ही | ||
+ | जगमगा उठते हैं | ||
+ | ब्रास के लाल फूल | ||
+ | सरसराते हैं | ||
+ | परिवर्तित अर्थ गभित | ||
+ | गहरे हरे पत्ते | ||
+ | घिरता है धीरे-धीरे | ||
+ | जनवरी का जमता अंधेरा | ||
+ | सिपाही बहुत उदास है। | ||
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10:16, 20 अप्रैल 2010 के समय का अवतरण
लड़ाई के बाद
छुट्टी पर घर चले सिपाही ने
देखा खिडकी के शीशे में
आई एक सुरंग
जल उठे डिब्बे के छोटे बल्ब
यात्रियों के अपरिचित चेहरे
दर्पण के माहौल की उत्सुकता
दर्पण बने कांच में
खुद को देखता है सिपाही
बोलती है धुंधली परछाईं
घिर आई है
आंखों के नीचे
अनुभव की झुर्री
ऊँघता है पलकों के पलने में
थका हुआ युद्ध
आग बरसाने वाली
उसकी कठोर उंगलियों ने
मनी-ऑर्डर की वापस आई रसीद को भी
तो लपेटा है
सुरंग पार पहुंचते ही
जगमगा उठते हैं
ब्रास के लाल फूल
सरसराते हैं
परिवर्तित अर्थ गभित
गहरे हरे पत्ते
घिरता है धीरे-धीरे
जनवरी का जमता अंधेरा
सिपाही बहुत उदास है।